शाम ढल नहीं पायी
मेरी यादो की कफस से निकल नहीं पायी,
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
अपने हाथो से क़त्ल किये है तेरे निशां,
पुरजो का साथ मगर नज़्म जल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
वक़्त के साथ चलती रही हो, अच्छा है,
क्या हुआ जो मेरे साथ चल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
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