Monday, 17 October 2011

रुबाई 2: "Madhushala" Extended


घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.

साकी तेरे दर पे भी अब,
सुकूं रिंद को नहीं मिलता,
मुझे रज़ा दे, तुझे मुबारक,
ये तेरी नयी मधुशाला.
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साधू मौलवी ने बटवारा,
मंदिर मस्जिद का कर डाला,
मुस्लिप को पैमाना दिया,
हिन्दू के हाथो में प्याला.

वाईज गौर से देख जरा,
हिन्दू मुस्लिम की सोबत को,
प्रेम, इश्क है हर पैमाना,
काबा काशी है मधुशाला.

1 comment:

shivani said...

घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.

very emotional.very nice .well done.keep it up.