Thursday, 3 February 2011

जरुरी तो नहीं

मंजर जो कल था वो अब हो, जरुरी तो नहीं,
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.


तुझमे सलीका है, नजाकत है, वफादारी है,
पर तुम्हारे जैसे ही सब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.

इसी पत्थर का निशाँ है मेरे पेशानी पे,
हर एक संग में रब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.

वो पूछते है क्यों देखते हो, मुस्कुराते हो,
हर एक बात का मतलब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.

लोग कहते है 'शफक' इश्क ने ये हाल किया,
वो एक ही सबब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.

ख़ामोशी ने भी बढ़ायी है दुरिया यु तो
गुनाहगार बस लब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
गज़ल

मेज पर रखी हुई एक अधमरी गज़ल के,
लफ्जो ने, जैसे एक दुसरे को पकड़ कर रखा था,
की कही हाथ छुट गए तो बिखर जायेंगे,
फिर कागज़ पे छिंटो के तरह बिखरे लफ्जो
के मायने ढूंडने पर भी शायद न मिले.

ऐसे ही कभी शिद्दत से पकड़ा था ना हाथ तुमने,
बड़ी जल्दी हाथ छुड़ाकर चली गयी तुम,
बिखरा पड़ा हु मै, अपनी ही ज़िंदगी में,
रोजाना कोशिश करता हु, ढूंडता हु ,
कोई मायना नज़र नहीं आता जीने का.
एक आखरी वफ़ा करदो मुझसे,
इन सारे लफ्जो को समेट्लो,
और दफनादो उसी आगाज पे,
जहा इन लफ्जोने एक दुसरे का हाथ थामा था.

Tuesday, 11 January 2011

मंजर

मंजर ऐसे भी आये है जिन्दगी के सफ़र में,
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.


तुझीसे छुपाऊ, सब तुझीको बताऊ,
कौन है तेरे अलावा मेरा पुरे शहर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.

रिश्ते फना होते है, निशाँ इश्क के नहीं,
तेरा जीकर अब भी आता है मेरे जीकर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.

Continue......

Wednesday, 5 January 2011


एक खरोच आई थी


एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे,
कई दिनों तक कुरेदते रहे वो दोनों,
उसका इलाज भी नहीं किया किसीने,
यु तो कहने को वो रिश्ता उनकी औलाद से कम न था,
पता नहीं ऐसा क्या हुआ की उसकी जख्म को अनदेखा किया,
बड़ी बेरुखी से पेश आते थे वो दोनों उससे,
उसकी चीखता, चिल्लाता, रोता रहता रात रातभर
कोई नहीं था पर चुप करने को, समझाने को.
उसका जख्म धीरे धीरे तासुर बन गया,
तकलीफ उस हद तक पहुच गयी की उसने अपनी साँसे रोक ली,
सुना है कल रात मौत हो गयी उस रिश्ते की,
बहोत देर तक रोते रहे वो दोनों, बहोत कोशिश की उसे जगाने की,
बहोत मनाया उसे, बहोत सहलाया उसके जख्म को,
दवा, दुआ दोनों बेअसर थी मगर,
वो रिश्ता नहीं जागा उस नींद से,
दम तोड़ दिया था उसने, आँखे बंद कर ली थी,
कोई वजह नहीं थी उसके पास शायद जीने की.
अब वो दोनों के पास कुछ भी नहीं बचा है.
अब वो दोनों अकेले रहते है,
जिन्दा है अब भी पर जी नहीं पाते.
वो रिश्ता एक जिंदगी था, जिसे वो दोनों जिते थे.
अब उस रिश्ते की कुछ तस्वीरे है दोनों के पास,
कुछ यादे है, कुछ किस्से है.
साँसों का बोझ बहोत भारी होता है,
पता नहीं कितने दिनों तक ढो पाएंगे अकेले.

एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे.

Monday, 3 January 2011

किरदार निभाऊ

हर रिश्ते की बारीकी हर बार निभाऊ,
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.


वो मुलाकात भर रहते बस खफा खफा,
उम्मीद की मै हसते हसते उनका इंतज़ार निभाऊ
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.

जो बाते वो न सुन पाती, गजलो में लिखी,
अब वो कहती है मै अपने अशआर निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.

'शफक' जरुरी है कोई एक बात करे,
रिश्ते की तहजीब रखु या प्यार निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.

Monday, 29 November 2010

मेरा इश्क

हर बात आजमाई गयी है बड़ी गौर से,
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

बड़ी खोकली है बुनियाद -ए- ऐतबार क्या करे,
मेरे लफ्ज तक जांचे गए है किसी और से.
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

इश्क की बात है, नाजुक है, नजाकत जरुरी है,
ये मसले भी कभी हल हुए है बहस औ शोर से.
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

Continue....

Saturday, 20 November 2010

ये कैसी तबीयत दी

ये कैसा दिल दिया खुदा, ये कैसी तबीयत दी,
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.


वो दोस्त भी अब शुमार है कुछ मेरे अपनों में,
हौसला माँगा जो मैंने, उसने नसीहत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.

दुवाये तहे दिल की और तजुर्बा उम्र का,
बेहतर होगा जो वालिद ने ऐसी वसीहत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.

इंसानों से जुडा है जरा संभलकर रहो 'शफक',
चौखट को लांघने से पहले माँ ने हिदायत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.