Monday, 25 October 2010

तुम्हारा फैसला होगा...


कितनी कुरबत होगी, कितना फासला होगा,
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.


बेहतर होगा न जिक्र करो फुरकत की वजहों का,
खामखा लफ्जो के छिन्टोसे तेरा दामन मैला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

मुझको पता है कुछ लफ्ज मेरे तुझको रुला रुला देंगे,
अब तक शायद जिनसे दिल थोड़ा बहोत बहला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

झूटी हँसी ने छुपा लिए होंगे कुछ दर्द भी तेरे,
आँखों का काजल पर कुछ तो फैला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

रातभर महकते रहे तेरी खुशबू से मेरे ख्वाब,
शाख-इ-नाउम्मीद पे कोई अरमान खीला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.
मायने


तुम्हारे न लौटकर आने के फैसले ने,
मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दीये.


अब किसी का इंतजार नहीं रहता,
किसीके आने और जाने से फर्क नहीं पड़ता अब,
बहोत भीड़ में भी बहोत अकेला होता हु मै.
आँखे भी किसी चेहरे को तलाशती नहीं अब,
अब मै अपना हर काम अपने वक़्त पे करता हु,
आजकल चाँद भी बस चाँद है,
उस एक दाग के अलावा कुछ भी नहीं बचा उसके पास,
कमरे में कुछ ख्याल रहते है सुस्त, थके हारे,
और कुछ अधमरी गज़ले डायरी के कफ़न में लिपटी हुई,
पड़ी रहती है मेज पर,
न ही कोई पढ़ता है और न ही कोई समझ पाया अब तक,
अब मै भी गौर नहीं करता उनपर,
क्या होगा हर्फ़ हर्फ़ बनी थी, हर्फ़ हर्फ़ बिखर जाएँगी.
बस एक चीज़ नहीं बदली तुम्हारे जाने के बाद,
तुम्हारी यादे आज भी आती है रोजाना,
कुछ देर बैठती है साथ, पुरानी बाते करती है,
कुछ गुज़ारे हुए हसीं मंज़र ताज़ा करती है,
और कुछ रुला देती है मुझको.
कुछ ऐसे गुजरते है दिन,
मेरे कमरे का आइना भी नहीं पहचानता अब मुझको,
उम्मीदों ने धीरे धीरे दम तोड़ दिया है,
अब कोई वजह नहीं दिखती जिंदा रहने की,

तुम्हारे न लौटकर आने के फैसले ने,
मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दीये.

Saturday, 16 October 2010

कुछ शिद्दत भी हो मिलने की


कुछ शिद्दत भी हो मिलने की, और मुफीद हालात भी हो,
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

लफ्जो की जरुरत कतई नहीं है, लुत्फ़ भी कम हो जायेगा.
शर्म-ओ-हया हो, डर हो थोडा, कुछ ऐसे तालुकात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

बंदिशे तू तोड़ जरा, कुछ इश्क को भी इतराने दे,
उलझे उलझे दिन गुजरे कुछ बहकी बहकी रात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

Tuesday, 5 October 2010

शायद...

एक चेहरा रहेगा धुन्दला सा, यादो पे धुल जमी होगी,
सब कुछ तो रहेगा दामन में, बस एक चीज़ की बहोत कमी होगी.


कुछ तारीखों पे शायद दिल कुछ देर के खातिर भर आये,
किसी शाम अचानक तन्हाई में बीते कल पे पछताए.
कभी नाम सुनो तो शायद दिल की धड़कन बढ़ जाएगी,
कभी रात अँधेरे यादे मेरी तुमसे देर तलक लड़ जाएगी,
कभी यु ही अचानक मेरी लिखी गझलो को सहलाओगी,
फिर चाँद को देखोगी जी भरके और खुदको बहलाओगी.
हर बात पे मेरी बात तुम्हे तो याद यक़ीनन आएगी,
कभी तुमको रुला रुला देगी, कभी तुमको कुछ समझाएगी.
मेरे अशआर सारी बीती बाते जिन्दा कर देंगे,
उन शामो को दोहराएंगे, वो राते जिंदा कर देंगे.
तुम कोशिश करना फिर भी मुझको भूल ही जाने की,
मेरी यादे, बाते मेरी और उस रब्त को दफनाने की.
किसी ख्वाब के माफिक धीरे धीरे मै धुन्दला हो जाऊंगा,
मसरूफ रहोगी तुम औरो में और मै यादो से भी खो जाऊंगा.
फिर शायद वो तारीखे भी तुम्हारे जहन से उतर जाये,
मेरा वजूद, मेरे अल्फाज़ कागज़ से गिरकर बिखर जाए,
शायद वो चाँद भी तुमको मेरी यादो तक न ला पाए,
न मेरी गज़ले तुमको गोद में अपनी सुला पाए.
तब कुछ वक़्त अकेले कमरे में, मेरी गज़लों की सोबत में,
दो चार कतरे आंसू के अपनी आंखोसे बहा देना,
हो पाए अगर मुमकीन तुमसे पुरे दिल से एक दुआ देना.
अब मेरी साँसे रुक जाये, दिल की आवाज़ भी थम जाये,
तेरी तस्वीर को तकता रहू, और बस उस पल ही दम जाए....

Sunday, 26 September 2010

इश्क बेघर है


कैसे हालात है, कैसा मंजर है,
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.


वो बहोत देर से चुप है, बात गहरी होगी,
हम जानते है ख़ामोशी समंदर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

मेरी रुखसत पे खामोश था वो कल,लेकिन,
आज रोया है बहोत, हालत अब कुछ बेहतर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

जो खोने का डर था वो तो लुट गया,
अब क्यों सहमे है, अब क्या डर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

Thursday, 16 September 2010

यु तो कहने को

यु तो कहने को साथ चलते रहे,
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.


इश्क को जूनून औ नशा कहनेवाले
क्या पता कैसे खुद संभलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

दिल तो टुटा भी, बिखर भी तो गया,
ख्वाब टुकडो में भी मगर पलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

तेरी मासूमियत भी खो गयी है कही,
मेरे अरमान भी सब जलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

मोम के थे क्या वो सभी वादे,
कतरा कतरा जो पिघलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

Wednesday, 1 September 2010

कभी कभी.......

रास्ते पे देखा, मुस्कुराया,दिखा दिया हाथ कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.


कितने डरे हुए थे लफ्ज, कपकपा रहे थे होटो पे,
आँखे बेबाक हो बताती है पर जज्बात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

सुना है सीने से लगाकर रखता है वो मेरी गज़लों को,
कागज की कीमत बढ़ा देते है खयालात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

रात को चाँद देखना हमे भी है बहोत अजीज,
पर अच्छी लगती है पूरी अंधेरी रात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

उसके करीब था बहोत और बहोत फासले भी थे,
ऐसे मंज़र भी हुए है 'शफक' के साथ कभी कभी
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.