Wednesday, 9 December 2020

मुश्किल है

हूबहू सब अहसास जताना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

किस मकसद, क्यों शुरू हुआ था ये सोचो,
जब भी लगे की रिश्ता निभाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

आसां है फिर भी, हार को हसके अपनाना,
जीत के भी, ना खुशी मनाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

वो मेरी चुप्पी, खामोशी पढ़ लेती है,
अब भी मां से बात छुपाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

जो खुद ही दे, आज़ादी हाथ छुड़ाने कि,
उन हाथो से हाथ छुड़ाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

कई रातों से नींदे रूठी है हमसे,
ख्वाबों पे अब शेर सुनाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

Tuesday, 1 December 2020

कमी

तपते सहरा में, जैसे जमीं महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

पलकों को उतना ही भिगोते है मेरे आंसू,
समंदर किनारे जितनी नमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

तेरी सोबत है तो, हर बात कुछ आसान लगती है,
वरना सांसों में भी बरहमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

अमूमन रोज़ हर आहट पे लगता है कि तुम आए,
कुछ देर को सांसे थमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।






सफर

क्यों उम्मीद करू आसां हो सफर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

इलाज ए मर्ज़ नहीं, बस दवा ए राहत हूं,
उतर जाएगा कुछ देर में असर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

ये तुफां ए समंदर से निपट लूं फिर भी,
ले डूबेगा मुझको खामखां डर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

हर सवाल पे उसके मै मुस्कुराता रहा,
लहज़ा पहले से रहा है मुख्तसर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

खामोशियां, उदासियां, बेरंग समा,
मेरे जैसा ही लगता है ये घर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।









Saturday, 4 January 2020

परेशां चल रहे है।

कैसे कहदे की क्यो परेशां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

वो हमको डरा रहा है पत्थर की ठोकरो से,
हम तो हाथो में लेकर के जां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

ये लंबा सफर, गर्म लू और ये सहरा,
ये मौसम भी हम पे मेहरबां चल रहे।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

न मंज़िल, न मक़सद, न साथी, न राहे,
कई लोग यू ख़ामख़ा चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

हालात खींचते है कदम दर कदम हमको,
अपनी मर्ज़ी से हम अब कहाँ चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

तेरे दिल औ ज़हन में, तेरी गुफ्तगू में,
तूने सोचा नही था हम वहां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

मेरे रुकने से उसकी भी टूटेगी हिम्मत,
वो पूछे तो कहना कि, हां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

Tuesday, 10 December 2019

दलील ए सफाई नही है।

मुझमें चालाखिया है, रंजिशें है, बेवफाई नही है।
ये हक़ीकत है मेरी दलील ए सफाई नही है।

वो अमूमन रोज़ाना सताती है उठाती है मुझे,
वो एक नज़्म जो खुदको भी सुनाई नही है।
ये हक़ीकत है मेरी दलील ए सफाई नही है।

क्यों रोउ, क्यो चीखु, तेरे जाने पे भला मैं,
महज़ रुख़सत है मेरी जां, ये जुदाई नही है।
ये हक़ीकत है मेरी दलील ए सफाई नही है।

तेरा खयाल, तेरी उम्मीद, तेरी यादे, कमी तेरी,
मैं अकेला हु, पर चार सु तनहाई नही है।
ये हक़ीकत है मेरी दलील ए सफाई नही है।

Tuesday, 22 January 2019

बंट गए है हम।

इतने लोगो में इस तरह बंट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।

कभी फैले हुए थे होंठो पे तबस्सुम की तरह,
अब कतरा ए आंसू तक सीमट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।

तुम्हारी दिलचस्पी कम होना लाजमी है बहोत,
शब ए माहताब हुआ करते थे, घट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।

मुमकीन है नज़र आने लगे सबको तुम्हारे दाग,
अब्र ए हिफाज़त थे 'शफ़क़', छट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।

Monday, 14 January 2019

जाने दो।

वो एक बहाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

रिश्ता टूटा तो ये कहा उसने,
वो पुराना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

जला, खाक हो गया दिल मेरा,
वैसे वीराना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

दौर ए इश्क़ क्या था, क्या बताऊँ,
रोना रुलाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

उससे उम्मीद ए वफ़ा न थी मुझे,
बस आज़माना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

सांसे तो नही लूटी है तुफानो ने,
आब ओ दाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

मैं सबकी जरूरतों में काम आया,
आखिर खज़ाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

हवा के मुख़ालिफ़ खड़ा था चराग,
उसने तो बुझाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

हो सकता है चुभे हो अशआर उसे,
पर मुझे भी सुनाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

वो जो याद ना आया तो लगा,
क्या सच मे भुलाना ही था? जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।

उसकी गरदन लगी थी दांव पर,
उसे सर झुकाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।