कैसे कहदे की क्यो परेशां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
वो हमको डरा रहा है पत्थर की ठोकरो से,
हम तो हाथो में लेकर के जां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
ये लंबा सफर, गर्म लू और ये सहरा,
ये मौसम भी हम पे मेहरबां चल रहे।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
न मंज़िल, न मक़सद, न साथी, न राहे,
कई लोग यू ख़ामख़ा चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
हालात खींचते है कदम दर कदम हमको,
अपनी मर्ज़ी से हम अब कहाँ चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
तेरे दिल औ ज़हन में, तेरी गुफ्तगू में,
तूने सोचा नही था हम वहां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
मेरे रुकने से उसकी भी टूटेगी हिम्मत,
वो पूछे तो कहना कि, हां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।
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