Monday, 17 December 2012

त्रिवेणी

त्रिवेणी

आइना देखता हु तो दर सा जाता हु इन दीनो,
तनाव की गहराईय पेशानी की लकीर बन गयी है.

माँ के आँचल से चेहरा पोछे अरसा हो गया है.

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किसी बेवा की तरह, सफ़ेद रोशनी लपेटे हुए गुजरता है दिन,
रात होते ही सितारों की चुनरी ओढ़कर चाँद की बिंदी लगा लेता है.

दो ज़िंदगी जीती है वो, दिन में मेरी बेवा है, रात किसीकी सुहागिन भी
.
 

कल यु ही...

कल यु ही तेरी यादो को टटोलते हुए,
जहन के एक कोने में एक ख़याल मिला,
बहोत पुराना सा लग रहा था,
मैंने जज्बातों की जालिया हटाई,
वक़्त की धुल को साफ़ किया,
...
बड़ी हिफाजत से उठाकर,
करीब लाकर गौर से देखा,
सालो पहले की एक शाम का मंजर,
तुझसे रुखसत लेते वक़्त,
मै कुछ कहते कहते रुक सा गया था,
भूल चुकी हो तुम?
मुझको भी कहा याद था वैसे,
वो अनकहा ख़याल अब भी जिंदा है,
'तुमसे मौजज़ा फिरसे मिलूँगा, मुझको यकीं है'
फिर 'उस' उम्मीद ने साँसे ली कल,
फिर 'उस' उम्मीद में जान आई है.

कल यु ही तेरी यादो को टटोलते हुए,
जहन के एक कोने में एक ख़याल मिला,

Monday, 29 October 2012

उस शब् का चाँद....

अब भी याद आता है उस शब् का चाँद,
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.

हैरा है सब मेरे इश्क की शिद्दत से,
मेरे चाँद सा कहा है आखिर सबका चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.

मेरी यादो को रोशन अक्सर करता है.
तेरे माथे का, आँखों का और लब का चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.

रोशनी भर बाकी है 'शफक' तसव्वुर में,
गौर से देखो डूब गया है कबका चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.

Sunday, 16 September 2012

रिश्ते

बड़े खामोश रहते है, सभी रूठे हुए रिश्ते,
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

ग़ज़ल के शेर में. तौफे में , पुरानी किताबो में,
ऐसे भी मिलते है  , कभी छूटे हुए रिश्ते
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

हजारो शक, दलीले, सख्त तर्कों की बहसबाजी
युही अपनी वकालत में अक्सर झूटे हुए रिश्ते.
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

Monday, 10 September 2012

रिश्ते

रिश्ते बनते है, बिगड़ते है, ख़तम नहीं होते .
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते .

बूढी आँखों को तजुर्बा है, परख भी है मगर,
ऐसा नहीं की उनको भरम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते .

कुछ तो हमने भी सवांरी है तुम्हारी हस्ती,
तुम क्या तुम बने होते, जो हम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

यक़ीनन तेरे न होने का बड़ा गम है मुझे,
तुम जो होते तो, कोई और गम नहीं होते?
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

ये तर्क, फलसफे तेरे, सबब-ए-फुरकत पे
सुनने में अच्छे है मगर, हजम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

तुझसे बाबस्ता तसव्वुर की है ये खुशनसीबी
हर ख्याल 'शफक' के  नज़म नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

Thursday, 2 August 2012

Triveni : Random Thoughts

बारिश में रातभर भीगता रहा पीला चाँद,
रातभर रोशनी का रंग छुटता रहा.

सहर से उसके चेहरे का रंग उड़ा उड़ा सा है.
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रोजाना लडाई होती है उससे,
रोज एक दुसरे को छोड़ देते है हम.

आज सुबह फिर उससे मोहब्बत हुई.
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Tuesday, 3 July 2012

चाँद की धुंधली रोशनी में....



चाँद की धुंधली रोशनी में,
खयालो की उंगली थामे,
अक्सर उस मरासिम की सैर पे निकालता हु.

वही जाना पहचाना रास्ता, वही मोड़,
वही मील के पत्थर, वही मौसम,
कुछ भी तो नहीं बदला,
और बदले भी कैसे,
इन रास्तो पे मेरे अलावा कौन आता होगा?
शायद तुम? शायद नहीं...
तुम्हारे कदमो के निशां मिलते है पर,
कही कही, धुंधले धुंधले,
मिटे नहीं है, पर मिटने को है,
तुम्हारी खुशबू हवा के झोंको से कभी कभी आती है,
छूकर गुजर जाती है
लिपटकर साथ नहीं चलती मेरे.
ख्वाबो के टुकडे कई दफा चुभते है मुझको,
उम्मीदे बूढ़े दरख़्त की तरह,
झुक गयी है, सुख गयी है,
अब भी कुछ देर उनकी पनाह में बैठता हु,
छाव मिले न मिले, राहत मिलती है यक़ीनन,
नमी महसूस होती है सबा में आज भी,
सिसकिय पत्तो की सरसराहट में सुनाई देती है साफ़,
उस आखरी मोड़ तक जब पहुचता हु,
तो दो रस्ते दिखाई देते है,
एक तुम्हारा और एक हम दोनोका,
तुम्हारे रास्ते की ओर ताकता हु,
नज़र दूर तक जाती है, तलाशती है तुम्हे,
तुम नहीं होती हो, कही नहीं,
नज़र उदास लौट आती है मेरे पास,
और फिर मै, चल पड़ता हु हम दोनोके रास्ते पर,
जहा अब मै हु और तुम्हारा ना होना!

चाँद की धुंधली रोशनी में,
खयालो की उंगली थामे,
अक्सर उस मरासिम की सैर पे निकालता हु.
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अहसां ही सही, अबके दफा मेरे लिए.
वो मरासीम चाहता है उसे फिरसे जिए.