अब भी याद आता है उस शब् का चाँद,
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.
हैरा है सब मेरे इश्क की शिद्दत से,
मेरे चाँद सा कहा है आखिर सबका चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.
मेरी यादो को रोशन अक्सर करता है.
तेरे माथे का, आँखों का और लब का चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.
रोशनी भर बाकी है 'शफक' तसव्वुर में,
गौर से देखो डूब गया है कबका चाँद.
कितना फीका फीका है ना अब का चाँद.
1 comment:
Kuch Kahne ki Izzat chata hun...
Tere Husn ki Ibdaat karna chata hun...
Aaj phir teri yaad me khud ko bhulana chata hun...
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