त्रिवेणी
आइना देखता हु तो दर सा जाता हु इन दीनो,
तनाव की गहराईय पेशानी की लकीर बन गयी है.
माँ के आँचल से चेहरा पोछे अरसा हो गया है.
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किसी बेवा की तरह, सफ़ेद रोशनी लपेटे हुए गुजरता है दिन,
रात होते ही सितारों की चुनरी ओढ़कर चाँद की बिंदी लगा लेता है.
दो ज़िंदगी जीती है वो, दिन में मेरी बेवा है, रात किसीकी सुहागिन भी
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