Thursday, 29 May 2025

ठहर जाते है।

पता नहीं ये रास्ते अब किधर जातें है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

ये दोस्ती, ये मोहब्बत, ये बिछड़ना, ये तन्हाई,
तमाम दौर है, और दौर गुज़र जाते है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

इससे बेहतर की उतर जाएं अपनी नजर से,
हमने सोचा तेरी नजर से उतर जातें है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

मस्जिद में सुकूं है, ना मयकदे में ही करार,
जो कहीं के नहीं रहते, किधर जातें है?
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

हमने देखे है अक्सर सभी बिगड़े हुए रिश्ते,
जरूरत केे तक़ाजो पे सुधर जाते है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

Friday, 16 May 2025

रात

टूटकर आसमान से बिखर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

तुम थे तो उतरता था चांद छत पे मेरे,
अब ये हाल है कि बस गुज़र रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

उजाले दिन के भी शरमा के मूंद ले आंखे,
कहीं ज़ेवर की तरह यूं उतर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

हमने यूं तय किया उजालों अंधेरों का सफर,
दिन उम्मीद रहे तो फिक़र रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

तेरी आंखों में 'शफ़क' झांकने से लगता है,
नूर ए दरिया से शगुफ्ता उभर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

इन दिनों रोज़ सहर आंखों में दिखती है थकन 
जैसे मुश्किल कोई लंबा सफर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

सहर वो बचता है मुझसे नज़र मिलाने में,
खामखां रोशनी में क्यों मुकर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।



Wednesday, 10 July 2024

निकल आते है।

आंसू, गुज़रे ज़माने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

नींद जैसे ही उतरती है थकी आंखो में,
खयाल कितने सिरहाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

कई चीजे नज़र आती नही उजालों में,
तारे, सूरज को बुझाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

मैं जो तनहाई में तकता हूं आसमां की तरफ,
चेहरे खास ओ पुराने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

कई मसले जिनके हल निकलते ही नहीं,
ज़रा सा 'मैं' को झुकाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

है कोई मोम सा बच्चा मेरे सीने में 'शफ़क़',
आसूं वही तो कहीं से पिघल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

जीने मरने का फलसफा और कुछ भी नही,
मैले कपड़े कही ख़ला से बदल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

Wednesday, 8 May 2024

कुछ भी नही।

बाक़ी ऐन–ए–हयात में, कुछ भी नही।
जाएगा अपने साथ में, कुछ भी नही।

ऐसे तो मैं ही मैं हूं कर्ता ओ कर्म, कारण,
वैसे हमारे हाथ में, कुछ भी नही।
जाएगा अपने साथ में, कुछ भी नही।

मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत के अलावा,
जरूरी तालुकात में, कुछ भी नही।
जाएगा अपने साथ में, कुछ भी नही।
 
सोचूं, तो कायनात की हर चीज है मुझमें,
देखू, मैं कायनात में, कुछ भी नही।
जाएगा अपने साथ में, कुछ भी नही।

Sunday, 5 May 2024

तब गज़ल बनी।

जो कहना था, न कह सका, तब गज़ल बनी।
मैं जब भी, मैं न रह सका, तब गज़ल बनी।

मुश्किल से कोई दर्द पककर आंसू तो बना,
और फिर न बह सका, तब गज़ल बनी।
मैं जब भी मैं न रह सका, तब गज़ल बनी।

सह लिया, जो पी गया, वो हिस्सा बना मेरा,
थोड़ा जो न सह सका, तब गज़ल बनी।
मैं जब भी मैं न रह सका, तब गज़ल बनी।

किस्से कहानी बन गए टूटे हुए सब ख्वाब,
वो ख्वाब, जो न ढह सका, तब गज़ल बनी।
मैं जब भी मैं न रह सका, तब गज़ल बनी।

हो सकता है।

मीठा पानी, और समंदर? हो सकता है।
कोई झरना गहरा अंदर, हो सकता है।

वो मेरी हर बात पे हामी भरता है,
प्रेम, समर्पण, निष्ठा या डर हो सकता है।
कोई झरना गहरा अंदर, हो सकता है।

ऐसे देखो मुश्किल, दुष्कर, और कठिन,
वैसे ये एक अदभुत अवसर हो सकता है।
कोई झरना गहरा अंदर, हो सकता है।

मेरे हाल पे हसनेवालो, याद रहे,
वक्त बुरा है और ये बेहतर हो सकता है।
कोई झरना गहरा अंदर, हो सकता है।

पहले खुदमे अर्जुन वाली बात तो ला,
तेरा सहायक भी युगंधर हो सकता है।
कोई झरना गहरा अंदर, हो सकता है।


 


Wednesday, 27 March 2024

तब रहेगा प्रेम, बस

हो पूर्णता अर्पण स्वयम का,
त्याग निजता का, अहम का,
औदार्य सब शंका, वहम का।
तब रहेगा प्रेम, बस!

कोई झिझक, संकोच, दुविधा,
हिचकिचाहट या असुविधा,
स्वाहा जब होगी ये समिधा।
तब रहेगा प्रेम, बस!

तन, मन, रहन हो जाए दर्पण,
पर आधीन नही, समर्पण,
हो पुष्प जैसे प्रभु को अर्पण।
तब रहेगा प्रेम, बस!

हो स्वतंत्र, अधिकार ना हो,
उम्मीदों का भार ना हो,
अनिवार्यता आधार ना हो।
तब रहेगा प्रेम, बस!

तन, मन, जहन, सब बांट ले,
अनुमान,शंका छांट ले,
बाहों में भरकर, डांट ले।
तब रहेगा प्रेम, बस!

हम, हम रहे, बदले नही,
किसी और रंग ढले नही,
हां, ये न हो संग चले नही।
तब रहेगा प्रेम, बस!