Thursday, 29 May 2025

ठहर जाते है।

पता नहीं ये रास्ते अब किधर जातें है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

ये दोस्ती, ये मोहब्बत, ये बिछड़ना, ये तन्हाई,
तमाम दौर है, और दौर गुज़र जाते है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

इससे बेहतर की उतर जाएं अपनी नजर से,
हमने सोचा तेरी नजर से उतर जातें है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

मस्जिद में सुकूं है, ना मयकदे में ही करार,
जो कहीं के नहीं रहते, किधर जातें है?
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

हमने देखे है अक्सर सभी बिगड़े हुए रिश्ते,
जरूरत केे तक़ाजो पे सुधर जाते है।
इसी मकाम पे कुछ देर ठहर जाते है।

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