Friday, 16 May 2025

रात

टूटकर आसमान से बिखर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

तुम थे तो उतरता था चांद छत पे मेरे,
अब ये हाल है कि बस गुज़र रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

उजाले दिन के भी शरमा के मूंद ले आंखे,
कहीं ज़ेवर की तरह यूं उतर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

हमने यूं तय किया उजालों अंधेरों का सफर,
दिन उम्मीद रहे तो फिक़र रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

तेरी आंखों में 'शफ़क' झांकने से लगता है,
नूर ए दरिया से शगुफ्ता उभर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

इन दिनों रोज़ सहर आंखों में दिखती है थकन 
जैसे मुश्किल कोई लंबा सफर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।

सहर वो बचता है मुझसे नज़र मिलाने में,
खामखां रोशनी में क्यों मुकर रही है रात।
उजाले डूब गए है, निखर रही है रात।



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