Saturday, 4 January 2020
परेशां चल रहे है।
Tuesday, 10 December 2019
दलील ए सफाई नही है।
Tuesday, 22 January 2019
बंट गए है हम।
इतने लोगो में इस तरह बंट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।
कभी फैले हुए थे होंठो पे तबस्सुम की तरह,
अब कतरा ए आंसू तक सीमट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।
तुम्हारी दिलचस्पी कम होना लाजमी है बहोत,
शब ए माहताब हुआ करते थे, घट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।
मुमकीन है नज़र आने लगे सबको तुम्हारे दाग,
अब्र ए हिफाज़त थे 'शफ़क़', छट गए है हम।
अपने किरदार से पूरी तरह कट गए है हम।
Monday, 14 January 2019
जाने दो।
वो एक बहाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
रिश्ता टूटा तो ये कहा उसने,
वो पुराना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
जला, खाक हो गया दिल मेरा,
वैसे वीराना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
दौर ए इश्क़ क्या था, क्या बताऊँ,
रोना रुलाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
उससे उम्मीद ए वफ़ा न थी मुझे,
बस आज़माना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
सांसे तो नही लूटी है तुफानो ने,
आब ओ दाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
मैं सबकी जरूरतों में काम आया,
आखिर खज़ाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
हवा के मुख़ालिफ़ खड़ा था चराग,
उसने तो बुझाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
हो सकता है चुभे हो अशआर उसे,
पर मुझे भी सुनाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
वो जो याद ना आया तो लगा,
क्या सच मे भुलाना ही था? जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
उसकी गरदन लगी थी दांव पर,
उसे सर झुकाना ही था, जाने दो।
उसे जाना ही था, जाने दो।
Friday, 28 December 2018
कुछ कर जाए।
इससे पहले की मर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
इतनी आदत है अंधेरो की,
रोशनी से ही डर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
ये हो सकता है रोने से,
ख्वाब फिसल के गीर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
दिल का बंद जो टूटा तो,
आंखों की झील न भर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
छोड़के शहरी मकानों को,
चल लौटे गांव के घर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
हर राह तुझी को जाती है
अब तू ही बता किधर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
जिसको जाना था चले गए,
जाने कब उनकी फिकर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
साहिल ने कुछ तो कहा होगा,
क्यो लौटके हर एक लहर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
मुझे डर है ये दौर ए उल्फत,
तेरे आने तक ना गुज़र जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।
Sunday, 2 December 2018
सोचा बहोत
सोचा बहोत, किया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।
मौत ने ज़िन्दगी छीन ली आखिर,
और बदले में दिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।
मैं कुछ भी नही हु दुनिया के लिए,
मेरी नज़र में दुनिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।
मैं उसके रूबरू जाता ही नही,
सामने सूरज के दीया कुछ भी नही?
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।
उसने कुछ ऐसे ज़िन्दगी बीता दी,
मयखाने आकर पीया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।
Wednesday, 17 October 2018
कहने नही देती।
बहोत कहना है, मजबूरिया कहने नही देती।
नदी खुदको यू समंदर तक बहने नही देती।
ज़िन्दगी शैतान बहोत है मेरे बेटी की तरह ही,
वो कोई चीज़ अपनी जगह रहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।
उसके अपने ही कई ग़म है लेकिन हा मेरी माँ,
मुझे अब तक मेरे भी दर्द कुछ सहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।
ऊंचा हुआ हूं बैठके वालिद के कांधो पे,
मेरी बुनियाद इमारत मेरी ढहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।
तजुर्बा ए ज़िन्दगी है, ये सोने की चूड़ियां,
माँ बेटी को बस श्रृंगार के गहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।