मेरी हकीकत जान लेते हो...
मेरे चेहरे को पढ़ते हो, सच मान लेते हो,
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.
नज़र में अब भी वो सवाल क्यों रखे खामखाँ.
किस हक से मेरी जाँ अब इम्तिहान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.
ये मोहब्बत ही है, महज हमदर्दी नहीं होगी?
सूना है आज भी मुझे नाम से पहचान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.
मुझे तो हक भी 'शफक' अपने बाकर्ज़ मिले है.
ताजूब है, बड़े हक से तुम अहसान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.
Monday, 12 March 2012
Friday, 3 February 2012
Random Lines...
मुद्दतो बाद निजात मिली है महफ़िलो से,
मुद्दतो बाद खुदसे लिपटकर रोया हु,
उफ़! तेरा जाना भी मुझे कुछ देकर गया.
___________________________________
कल रातभर टपकती रही रोशनी चाँद से,
मेरे कमरे के खुश्क अँधेरे से निजात मिली,
ऐसे ही एक चाँद था मेरा, रूह को रोशन करता था.
___________________________________
कल रातभर धुन्धता रहा गज़लों में,
सारी गज़ले अशआर अशआर कर देखली,
एक लम्हा संभलकर रखा था गज़लों में, हा तुझसे ही बाबस्ता
___________________________________
बहोत देर तक उस बज़्म की रूमानी में कैद रहा,
अँधेरे कोनो में धुन्ड़ता रहा तेरी गैर मौजूदगी.
किसी और के होने से भी बेहतर है, तेरा ना होना.
मुद्दतो बाद निजात मिली है महफ़िलो से,
मुद्दतो बाद खुदसे लिपटकर रोया हु,
उफ़! तेरा जाना भी मुझे कुछ देकर गया.
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कल रातभर टपकती रही रोशनी चाँद से,
मेरे कमरे के खुश्क अँधेरे से निजात मिली,
ऐसे ही एक चाँद था मेरा, रूह को रोशन करता था.
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कल रातभर धुन्धता रहा गज़लों में,
सारी गज़ले अशआर अशआर कर देखली,
एक लम्हा संभलकर रखा था गज़लों में, हा तुझसे ही बाबस्ता
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बहोत देर तक उस बज़्म की रूमानी में कैद रहा,
अँधेरे कोनो में धुन्ड़ता रहा तेरी गैर मौजूदगी.
किसी और के होने से भी बेहतर है, तेरा ना होना.
Friday, 9 December 2011
Wednesday, 16 November 2011
रात तनहा सहर तक जाएगी...
शाम फिर खाली हाथ आएगी,
रात तनहा सहर तक जाएगी.
करवटों में, कभी सुनी छतो पे,
रात क्या नींद ढूंड पायेगी?
रात तनहा सहर तक जाएगी.
चाँद खिड़की से झाकेगा आदतन,
चांदनी फिरसे दिल जलाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
लफ्ज आँखों में झिलमिलायेंगे
नज़्म तकिये में सर छुपाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
शाम फिर खाली हाथ आएगी,
रात तनहा सहर तक जाएगी.
करवटों में, कभी सुनी छतो पे,
रात क्या नींद ढूंड पायेगी?
रात तनहा सहर तक जाएगी.
चाँद खिड़की से झाकेगा आदतन,
चांदनी फिरसे दिल जलाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
लफ्ज आँखों में झिलमिलायेंगे
नज़्म तकिये में सर छुपाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
Monday, 17 October 2011
दोहे:
फसले सब लज्जीत हुई,खेतो ने किया उपवास,
माँ ने जब बेटा रखा गिरवी शहर के पास.
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देहातो की सडको सा मेरा जीवनमान,
दिन रहते तक भीड़ रहे, रातो में सुनसान.
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बंटवारे के अंत में सब बेटे चुपचाप,
जर जमीन तक ठीक था, कौन रखे माँ बाप.
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फसले सब लज्जीत हुई,खेतो ने किया उपवास,
माँ ने जब बेटा रखा गिरवी शहर के पास.
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देहातो की सडको सा मेरा जीवनमान,
दिन रहते तक भीड़ रहे, रातो में सुनसान.
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बंटवारे के अंत में सब बेटे चुपचाप,
जर जमीन तक ठीक था, कौन रखे माँ बाप.
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रुबाई 2: "Madhushala" Extended
घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.
साकी तेरे दर पे भी अब,
सुकूं रिंद को नहीं मिलता,
मुझे रज़ा दे, तुझे मुबारक,
ये तेरी नयी मधुशाला.
____________________________________
साधू मौलवी ने बटवारा,
मंदिर मस्जिद का कर डाला,
मुस्लिप को पैमाना दिया,
हिन्दू के हाथो में प्याला.
वाईज गौर से देख जरा,
हिन्दू मुस्लिम की सोबत को,
प्रेम, इश्क है हर पैमाना,
काबा काशी है मधुशाला.
घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.
साकी तेरे दर पे भी अब,
सुकूं रिंद को नहीं मिलता,
मुझे रज़ा दे, तुझे मुबारक,
ये तेरी नयी मधुशाला.
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साधू मौलवी ने बटवारा,
मंदिर मस्जिद का कर डाला,
मुस्लिप को पैमाना दिया,
हिन्दू के हाथो में प्याला.
वाईज गौर से देख जरा,
हिन्दू मुस्लिम की सोबत को,
प्रेम, इश्क है हर पैमाना,
काबा काशी है मधुशाला.
रुबाई : "Madhushala" Extended
बस बेहोशी की खातीर,
पिता है ये मतवाला,
सच्चाई से दूर रखेगी,
कब तक ये झूटी हाला
होश में जो ये देख लिया तो,
कैसे होश संभालूँगा,
मै मदिरा, मै ही साकी,
तनहा मेरी मधुशाला.
____________________________________
जरा हाथ कम्पन हुआ,
छलक गयी पुरी हाला,
जरा नशे में लडखडाया मै,
क्यों तुमने न संभाला,
मुझको साकी बड़ा नाज़ था,
तेरे नशे की शिद्दत पर,
कितने नाज़ुक प्याले थे सब,
बड़ी कमज़ोर थी मधुशाला.
बस बेहोशी की खातीर,
पिता है ये मतवाला,
सच्चाई से दूर रखेगी,
कब तक ये झूटी हाला
होश में जो ये देख लिया तो,
कैसे होश संभालूँगा,
मै मदिरा, मै ही साकी,
तनहा मेरी मधुशाला.
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जरा हाथ कम्पन हुआ,
छलक गयी पुरी हाला,
जरा नशे में लडखडाया मै,
क्यों तुमने न संभाला,
मुझको साकी बड़ा नाज़ था,
तेरे नशे की शिद्दत पर,
कितने नाज़ुक प्याले थे सब,
बड़ी कमज़ोर थी मधुशाला.
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