शाम ढल नहीं पायी
मेरी यादो की कफस से निकल नहीं पायी,
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
अपने हाथो से क़त्ल किये है तेरे निशां,
पुरजो का साथ मगर नज़्म जल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
वक़्त के साथ चलती रही हो, अच्छा है,
क्या हुआ जो मेरे साथ चल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
........
Saturday, 30 July 2011
Sunday, 24 July 2011
दोहे
जो छुटा वो पास रहा, जो हासिल था वो दूर.
उसको वो मंजूर था, जो मुझको नामंजूर.
-------------------------------------
हुआ प्रदुषण सोच में, गयी आँखों में धुल,
देहाती से हो बैठी शहर परख में भूल.
-------------------------------------
भिन्न भिन्न रिश्ते सभी, एक है सबका सार.
पहले जितना प्यार था, अब उतना अधिकार.
जो छुटा वो पास रहा, जो हासिल था वो दूर.
उसको वो मंजूर था, जो मुझको नामंजूर.
-------------------------------------
हुआ प्रदुषण सोच में, गयी आँखों में धुल,
देहाती से हो बैठी शहर परख में भूल.
-------------------------------------
भिन्न भिन्न रिश्ते सभी, एक है सबका सार.
पहले जितना प्यार था, अब उतना अधिकार.
Thursday, 7 July 2011
तेरी यादो के छींटे है
रुखी सुखी जहन की मिटटी, कुछ तेरी यादो के छींटे है,
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रूबरू हमसे तब करना, हम गहरी नींद में सोये हो,
मुझको यक़ीनन माफ़ करेंगे, लोग जो हमसे रूठे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
तौफे के तुकडे तो समेटे, साथ भी ले जाओगे तुम,
बिखरे है अब तक कमरे में, कल रात जो रिश्ते टूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
नादानी में लुट जाये तो, गलतफहमिया मत रखना,
हमने भी पतंगे काटी है, हमने भी मांजे लूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
सब कहते है पहले वाली, बात 'शफक' अब नहीं आती,
पहले झूट लिखा करते थे, या अब सच में झूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रुखी सुखी जहन की मिटटी, कुछ तेरी यादो के छींटे है,
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रूबरू हमसे तब करना, हम गहरी नींद में सोये हो,
मुझको यक़ीनन माफ़ करेंगे, लोग जो हमसे रूठे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
तौफे के तुकडे तो समेटे, साथ भी ले जाओगे तुम,
बिखरे है अब तक कमरे में, कल रात जो रिश्ते टूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
नादानी में लुट जाये तो, गलतफहमिया मत रखना,
हमने भी पतंगे काटी है, हमने भी मांजे लूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
सब कहते है पहले वाली, बात 'शफक' अब नहीं आती,
पहले झूट लिखा करते थे, या अब सच में झूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
Tuesday, 28 June 2011
त्रिवेणी
कुछ तस्वीरे निकाल ली थी उसने एल्बम से,
बहोत प्यार से खिचवाई थी कभी हमने,
काश कुछ पन्ने ज़िन्दगी के भी निकाल पाते हमेशा के लिए.
-----------------------------------------------------------------------
तुमने जाते हुए मुस्कुराकर देखा था मेरी ओर,
लगा था तुम जरुर लौटकर आओगी.
यकीन नहीं होता एक मजाक क्या क्या कर सकता है.
-----------------------------------------------------------------------
पहले इन्ही बातो में दिन गुजारा करते थे हम दोनों,
अब वो सारी बेमतलब की बाते फिजूल लगती है.
कुछ मेरी नजर बदलती गयी कुछ तुम चेहरे बदलते गए.
----------------------------------------------------------------------
कुछ तस्वीरे निकाल ली थी उसने एल्बम से,
बहोत प्यार से खिचवाई थी कभी हमने,
काश कुछ पन्ने ज़िन्दगी के भी निकाल पाते हमेशा के लिए.
-----------------------------------------------------------------------
तुमने जाते हुए मुस्कुराकर देखा था मेरी ओर,
लगा था तुम जरुर लौटकर आओगी.
यकीन नहीं होता एक मजाक क्या क्या कर सकता है.
-----------------------------------------------------------------------
पहले इन्ही बातो में दिन गुजारा करते थे हम दोनों,
अब वो सारी बेमतलब की बाते फिजूल लगती है.
कुछ मेरी नजर बदलती गयी कुछ तुम चेहरे बदलते गए.
----------------------------------------------------------------------
Monday, 27 June 2011
हथेली
कल गौर से देखा अपनी हथेली को,
कितनी लकीरे, कुछ गहरी, कुछ धुंदली सी,
आधी अधूरी कई लकीरे एक दूजे में उलझी हुई,
क्या पता क्या मायने है इनके, है भी या बस यु ही है ये सब.
मुझको अब भी याद है लेकिन,
उस दिन तुमने मेरी हथेली में अपनी लकीर दिखाई थी,
कितनी गहरी और पूरी थी उन दिनों,
उस लकीर के अलावा किसी और का मायना नहीं पता था मुझको,
अब वो दोनों लकीरे धुंदली है,
बस एक निशान भर बचा है उसके होने का.
तुम्हारी लकीर मेरे हाथो से अब बस मिटने को है,
एक और लकीर भी मिट जाएगी यक़ीनन मेरे उम्र की.
कल गौर से देखा अपनी हथेली को,
कितनी लकीरे, कुछ गहरी, कुछ धुंदली सी,
आधी अधूरी कई लकीरे एक दूजे में उलझी हुई,
क्या पता क्या मायने है इनके, है भी या बस यु ही है ये सब.
मुझको अब भी याद है लेकिन,
उस दिन तुमने मेरी हथेली में अपनी लकीर दिखाई थी,
कितनी गहरी और पूरी थी उन दिनों,
उस लकीर के अलावा किसी और का मायना नहीं पता था मुझको,
अब वो दोनों लकीरे धुंदली है,
बस एक निशान भर बचा है उसके होने का.
तुम्हारी लकीर मेरे हाथो से अब बस मिटने को है,
एक और लकीर भी मिट जाएगी यक़ीनन मेरे उम्र की.
Thursday, 2 June 2011
फुरकत के बाद........
अंजाम ये हुआ इश्क का फुरकत के बाद,
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
मैंने यु भी ली है रंजिश खुदा से, खुदाई से,
कभी चाँद नहीं देखा तुझसे रुखसत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
वक़्त रेंगता है लम्हा दर लम्हा बेजान सा.
लम्हों में रूह आ गयी थी तेरी शिरकत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
...........................................................................
अंजाम ये हुआ इश्क का फुरकत के बाद,
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
मैंने यु भी ली है रंजिश खुदा से, खुदाई से,
कभी चाँद नहीं देखा तुझसे रुखसत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
वक़्त रेंगता है लम्हा दर लम्हा बेजान सा.
लम्हों में रूह आ गयी थी तेरी शिरकत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
...........................................................................
Subscribe to:
Posts (Atom)