Friday, 29 October 2021

मैं

मैं ही अपनी तलब रहा हु, मैं ही अपना नशा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त से कहदो, इस लम्हे में, जिस्म है मेरा, मैं ना हु,
कबका आगे निकल चुका मैं या फिर पीछे रुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

कई चेहरे है, कई है पहलू, कई किरदार निभाता हु,
मेरे जैसा भी मैं ही हु, और कुछ खुदसे जुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

आंखे बंद कर, बूत के आगे, जब अपना सर रखता हूं,
कई दफा ये लगता है, 'मैं' खुदके आगे झुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त हो जैसे बहता दरिया, सारे मौसम साथ लिए,
हयात की कश्ती में बैठा, बेइल्म सा नाख़ुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

Wednesday, 10 February 2021

भक्ती की बुनियाद है क्या?

भक्ती की बुनियाद है क्या?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये यथाचार, अनुशासन क्यो?
जो भक्त के हिस्से तृण आसन,
भगवान को फिर सिंघासन क्यो?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये शुद्ध, अशुद्ध की शर्तें क्यो?
संवाद रहे मन से मन का,
ये मंत्र, श्लोक की परतें क्यो?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये एकतरफा अभिनंदन क्यों,
हो प्रणयलिप्त बस आलिंगन,
नतमस्तक होकर वंदन क्यो?

जो डर है भक्ति कारण तो,
कोई भुलसे भी अपराध ना हो,
वो जो भी करे स्वीकार करो,
फिर कोई बहस, संवाद न हों।

जो डर है भक्ति कारण तो,
गलती पे क्षमा अभिलाषा क्यो,
उस डर के ईश से फिर तुमको,
हो दया, प्रेम की आशा क्यों?

जो डर है भक्ति कारण तो,
वो मालिक है, भगवान नही,
तुम केवल हो बंधक उसके,
जिन्हें करुणा का वरदान नही।

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
क्यो रामायण पर बाते हो?
बस लेन देन का हो हिसाब,
गीताके जगह बही खाते हो।

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
भक्ति का स्वांग दिखावट क्यो,
ये माला, अंगूठी, कुमकुम और,
ये चंदन लेप सजावट क्यो?

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
हर अर्पण हो प्रतिफल के लिए,
हो एक ही कारण मिलने का,
बस अपनी समस्या हल के लिए।

प्रभु, तुम्ही बताओ भक्ति का,
आखिर सच्चा अवलंब है क्या?
ये पूजा पाठ, ये ध्यान, योग,
ये आडम्बर है, दम्भ है क्या?

न पूर्ण प्रेम ही है भक्ति,
ना पूर्ण स्वार्थ, ना ही डर है,
ये है प्रयाग इन भावों का
ये बहुरंगी, निर्मल निर्झर है।

हुम् भक्ति का मर्म समझ पाए
हुम् मीरा, तुलसी, प्रल्हाद नही,
है भक्ति ही बुनियाद स्वयम,
भक्ति की कोई बुनियाद नही।

Tuesday, 19 January 2021

संघर्ष जारी है।

संघर्ष जारी है।

दीप का हवाओं से,
मरहमो का घाव से,
त्याग का लगाव से,
मेरा निज स्वभाव से,
संघर्ष जारी है

तितलियों का शूल से,
दर्पणों का धूल से,
इच्छा का उसूल से,
मेरा पुरानी भूल से,
संघर्ष जारी है।

सत्य का प्रमाण से,
शब्द का ज़ुबान से,
पांव का थकान से,
मेरा स्वाभिमान से,
संघर्ष जारी है।

दृष्टी का दृष्टिकोण से,
भिक्षु का अपने द्रोण से,
उच्चतम का गौण से
मेरा अपने मौन से।
संघर्ष जारी है।

वासना का प्रीत से,
सत्य का प्रतीत से,
तुकबंदियों का गीत से,
मेरा निज अतीत से।
संघर्ष जारी है।

कल्पना का ज्ञान से,
मन का मन के ध्यान से,
शमशीर का मयान से,
मेरा मेरे ईमान से,
संघर्ष जारी है।

राम का स्वधर्म से,
भरत का राजकर्म से,
सिया का मृगचर्म से,
मेरा हृदय के मर्म से।
संघर्ष जारी है।







Wednesday, 9 December 2020

मुश्किल है

हूबहू सब अहसास जताना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

किस मकसद, क्यों शुरू हुआ था ये सोचो,
जब भी लगे की रिश्ता निभाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

आसां है फिर भी, हार को हसके अपनाना,
जीत के भी, ना खुशी मनाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

वो मेरी चुप्पी, खामोशी पढ़ लेती है,
अब भी मां से बात छुपाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

जो खुद ही दे, आज़ादी हाथ छुड़ाने कि,
उन हाथो से हाथ छुड़ाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

कई रातों से नींदे रूठी है हमसे,
ख्वाबों पे अब शेर सुनाना, मुश्किल है।
खुल के दिल कि बात बताना, मुश्किल है।

Tuesday, 1 December 2020

कमी

तपते सहरा में, जैसे जमीं महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

पलकों को उतना ही भिगोते है मेरे आंसू,
समंदर किनारे जितनी नमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

तेरी सोबत है तो, हर बात कुछ आसान लगती है,
वरना सांसों में भी बरहमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।

अमूमन रोज़ हर आहट पे लगता है कि तुम आए,
कुछ देर को सांसे थमी महसूस होती है।
मुझे कुछ उस तरह तेरी कमी महसूस होती है।






सफर

क्यों उम्मीद करू आसां हो सफर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

इलाज ए मर्ज़ नहीं, बस दवा ए राहत हूं,
उतर जाएगा कुछ देर में असर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

ये तुफां ए समंदर से निपट लूं फिर भी,
ले डूबेगा मुझको खामखां डर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

हर सवाल पे उसके मै मुस्कुराता रहा,
लहज़ा पहले से रहा है मुख्तसर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।

खामोशियां, उदासियां, बेरंग समा,
मेरे जैसा ही लगता है ये घर मेरा।
मै चिराग़ हूं, जलना है मुकद्दर मेरा।









Saturday, 4 January 2020

परेशां चल रहे है।

कैसे कहदे की क्यो परेशां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

वो हमको डरा रहा है पत्थर की ठोकरो से,
हम तो हाथो में लेकर के जां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

ये लंबा सफर, गर्म लू और ये सहरा,
ये मौसम भी हम पे मेहरबां चल रहे।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

न मंज़िल, न मक़सद, न साथी, न राहे,
कई लोग यू ख़ामख़ा चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

हालात खींचते है कदम दर कदम हमको,
अपनी मर्ज़ी से हम अब कहाँ चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

तेरे दिल औ ज़हन में, तेरी गुफ्तगू में,
तूने सोचा नही था हम वहां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।

मेरे रुकने से उसकी भी टूटेगी हिम्मत,
वो पूछे तो कहना कि, हां चल रहे है।
इन दिनों ज़िन्दगी के इम्तेहां चल रहे है।