उनको बड़ी शिकायत रहा करती थी मेरे रवैय्ये से,
बड़ी तहजीब पसंद थी वो, और मै बेफिक्र, अल्हड.
मिजाज़ बदल गया है मेरा, इरादा उनका बदलेगा कभी?
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उसके साथ कई रिश्ते रहे मेरे,
दोस्त बने, फिर इश्क हुआ, अब फकत जान पहचान है.
लिबास का रंग फीका पड़ता है वक़्त के साथ.
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मैंने वो हर चीज़ जो सीखी है.
सलीके से करता हु,
कम्बक्त! कोई इश्क क्यों नहीं सिखाता?
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उसने आखरी ख़त में अपना नाम लिखा था निचे,
पर सिर्फ नाम था "सिर्फ तुम्हारी" लिखना भूल गयी थी शायद.
बड़ा सलीका था उसमे, मर्ज भी लिफाफे में भेजा.
बड़ी तहजीब पसंद थी वो, और मै बेफिक्र, अल्हड.
मिजाज़ बदल गया है मेरा, इरादा उनका बदलेगा कभी?
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उसके साथ कई रिश्ते रहे मेरे,
दोस्त बने, फिर इश्क हुआ, अब फकत जान पहचान है.
लिबास का रंग फीका पड़ता है वक़्त के साथ.
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मैंने वो हर चीज़ जो सीखी है.
सलीके से करता हु,
कम्बक्त! कोई इश्क क्यों नहीं सिखाता?
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उसने आखरी ख़त में अपना नाम लिखा था निचे,
पर सिर्फ नाम था "सिर्फ तुम्हारी" लिखना भूल गयी थी शायद.
बड़ा सलीका था उसमे, मर्ज भी लिफाफे में भेजा.