वो मेरी गज़ले पढ़ता है, पसंद करता है,
न मुझे देखा है कभी उसने, ना ही सूना है,
बस मेरे लफ्जो से जनता है मुझे,
मेरे चेहरे की कोई तसव्वुरत उसके जहन में शायद नहीं होगी.
पर कल मेरे लिए एक नज़्म लिखी उसने.
इससे बेहतर स्केच आजतक किसीने नहीं बनाई मेरी,
मेरी रूह हुबहू उसके नज़्म जैसी लगती है.
कुछ बस 'रिश्ते' होते है, कोई और नाम नहीं होता उनका.
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न मुझे देखा है कभी उसने, ना ही सूना है,
बस मेरे लफ्जो से जनता है मुझे,
मेरे चेहरे की कोई तसव्वुरत उसके जहन में शायद नहीं होगी.
पर कल मेरे लिए एक नज़्म लिखी उसने.
इससे बेहतर स्केच आजतक किसीने नहीं बनाई मेरी,
मेरी रूह हुबहू उसके नज़्म जैसी लगती है.
कुछ बस 'रिश्ते' होते है, कोई और नाम नहीं होता उनका.
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