Friday, 24 December 2021

सवाल

मैं चालाख समझ लूंगा, तुमको, संभाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

देखो ना छोटी बात, मामूली सवाल था,
मसअला बना दिया है तुमने टाल टाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

ये रिश्ता दोनों की जरूरत है बराबर,
फ़क़त हम ही नही पागल तेरे विसाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

ज़िन्दगी के नायाब औ अहम फैसले तमाम,
अमूमन सभी लेते है सिक्का उछाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

क़त्ल ही करदे मुझे, या जीने की वजह दे,
ऐसे ना जा मुझको यू मुश्किल में डाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

ना लफ्ज़, ना रदीफ़, ना बहर, ना काफ़िया,
ख़यालो कि सबब बनते है मिसरे कमाल के।
इतने जवाब ना दो, मेरे एक सवाल के।

Friday, 12 November 2021

चल दीवाने चलते है

चल दीवाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

देख तू सच मत कह देना,
यहा सिर्फ बहाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

तन्हा रात में साथ मेरे,
कुछ ख्वाब पुराने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

रिन्द लडखडाये तो फिर,
खुद पैमाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

दीवाने बनाते है राहें,
फिर उसपे सयाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

ये चाँद, सितारे, अब्र औ हवा,
मेरे साथ ख़ज़ाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

Monday, 1 November 2021

इजाज़त

तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

कश्ती है बादबानी, समंदर भी बातूफान है,
यकायक जमीं पे जैसे टूटा आसमान है,
माना ये सफर शाक है, दुश्वार है बहोत, 
माना ये बहोत मुश्किल, पेचीदा इम्तेहान है,
पर ये दौर है फ़क़त, कोई क़यामत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

जो हो रहा है उसपे तेरा क्या कोई ज़ोर है?
हालात सख्त है मगर तू भी कहा कमज़ोर है?
बदलाव ही एक सच है जो सब पे अमल है,
ऐतबार कर रात के उस पार उजली भोर है।
ना सोच तुझपे उसकी नज़र ए इनायत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

विपरीत है हालात संयम से काम ले ज़रा,
जो जीतना है अन्ततः, युद्ध से विराम ले ज़रा,
यही वक़्त है खुदको आज़मा के ज़रा देख ले,
खुदकी मदद के वास्ते बस खुदका नाम ले ज़रा।
खुदसे बड़ी दुनिया मे कोई सदाक़त नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

ये दौर, जाने अनजाने है कर रहा बेहतर तुझे,
देखना काम आएंगे तजुर्बे उम्रभर तुझे,
उन मुश्किलो से लड़ रहा है देख हो बेबाक तू,
बेइंतेहा जिनसे कभी लगता रहा है डर तुझे।
शफ़क ज़िन्दगी की तुझसे अदावत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।







किरदार

ऐसा नही की कहानी में मेरा किरदार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

ये क़ुरबतो ने खड़े कर दिए है मसायल कितने,
सोचता हूं, मैं इस पार, वो उस पार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

ये तूने क्या कर दिया इसे 'रिश्ता' बनाकर,
इससे कई सौ गुना मेरा 'बस प्यार' अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

हालांकि अपने आप मे था नाकामियाब ही,
वो जो ज़मानेभर को सलाहगार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

आंखों में चमक, तबस्सुम, रुख पे ताज़गी ना थी,
बिंदिया, चुनर, चूड़ियां, गले का हार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

किनारा

इससे जुदा क्या और नज़ारा होगा।
उस पार भी रेत ही का किनारा होगा।

ये क्या जन्नत औ दोज़ख़ की बात करते हो,
कुछ करो की इस ज़मी पे गुज़ारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

बचा लिया है ठोकरों ने बड़े हादसो से,
हो सकता है ये उसका इशारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

कश्तियों ने मुसाफ़िर कुछ डुबोये होंगे,
समंदर ने कुछ को पार उतारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

बाकि सबने किया होगा मेरी बातों पे यकीं,
बस उसने मेरे चेहरे को निहारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

Sunday, 31 October 2021

जाने दे

जो हुआ, वो गुज़र गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

मंज़िल, रस्ता, वही है अब भी, वैसे ही,
छोड़ के बस हमसफर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

हालात सबब थे फुरक़त का तो कोशिश कर,
वो अपनी मर्ज़ी से अगर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

देख पुरानी ग़ज़ले खुदकी पढ़ने में,
कोई ज़ख्म पुराना उभर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

दोनों ज़िम्मेदार हो तुम इस दूरी के,
तू इधर रहा, वो उधर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

Friday, 29 October 2021

ढूंढता है।

अजीब शख़्स है, हर बात का मतलब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

वो शिद्दत, इज़ाफ़ी, वो इश्क़ औ वो क़ुरबत,
मैं तब ढूंढता था वो अब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

यही फ़र्क़ दोनों के इश्क़ औ तलब में,
मैं आंखे, पेशानी, वो लब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

मैं होता हु अक्सर तब महसूस उसको,
बंद आंखों से मुझको वो जब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

इल्म हो ना हो उसको, मुझे खो चुका है,
बस अब देखना है की कब ढूढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

मैं

मैं ही अपनी तलब रहा हु, मैं ही अपना नशा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त से कहदो, इस लम्हे में, जिस्म है मेरा, मैं ना हु,
कबका आगे निकल चुका मैं या फिर पीछे रुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

कई चेहरे है, कई है पहलू, कई किरदार निभाता हु,
मेरे जैसा भी मैं ही हु, और कुछ खुदसे जुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

आंखे बंद कर, बूत के आगे, जब अपना सर रखता हूं,
कई दफा ये लगता है, 'मैं' खुदके आगे झुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त हो जैसे बहता दरिया, सारे मौसम साथ लिए,
हयात की कश्ती में बैठा, बेइल्म सा नाख़ुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

Wednesday, 10 February 2021

भक्ती की बुनियाद है क्या?

भक्ती की बुनियाद है क्या?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये यथाचार, अनुशासन क्यो?
जो भक्त के हिस्से तृण आसन,
भगवान को फिर सिंघासन क्यो?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये शुद्ध, अशुद्ध की शर्तें क्यो?
संवाद रहे मन से मन का,
ये मंत्र, श्लोक की परतें क्यो?

जो प्रेम है भक्ती कारण तो,
ये एकतरफा अभिनंदन क्यों,
हो प्रणयलिप्त बस आलिंगन,
नतमस्तक होकर वंदन क्यो?

जो डर है भक्ति कारण तो,
कोई भुलसे भी अपराध ना हो,
वो जो भी करे स्वीकार करो,
फिर कोई बहस, संवाद न हों।

जो डर है भक्ति कारण तो,
गलती पे क्षमा अभिलाषा क्यो,
उस डर के ईश से फिर तुमको,
हो दया, प्रेम की आशा क्यों?

जो डर है भक्ति कारण तो,
वो मालिक है, भगवान नही,
तुम केवल हो बंधक उसके,
जिन्हें करुणा का वरदान नही।

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
क्यो रामायण पर बाते हो?
बस लेन देन का हो हिसाब,
गीताके जगह बही खाते हो।

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
भक्ति का स्वांग दिखावट क्यो,
ये माला, अंगूठी, कुमकुम और,
ये चंदन लेप सजावट क्यो?

जो स्वार्थ है भक्ति कारण तो,
हर अर्पण हो प्रतिफल के लिए,
हो एक ही कारण मिलने का,
बस अपनी समस्या हल के लिए।

प्रभु, तुम्ही बताओ भक्ति का,
आखिर सच्चा अवलंब है क्या?
ये पूजा पाठ, ये ध्यान, योग,
ये आडम्बर है, दम्भ है क्या?

न पूर्ण प्रेम ही है भक्ति,
ना पूर्ण स्वार्थ, ना ही डर है,
ये है प्रयाग इन भावों का
ये बहुरंगी, निर्मल निर्झर है।

हुम् भक्ति का मर्म समझ पाए
हुम् मीरा, तुलसी, प्रल्हाद नही,
है भक्ति ही बुनियाद स्वयम,
भक्ति की कोई बुनियाद नही।

Tuesday, 19 January 2021

संघर्ष जारी है।

संघर्ष जारी है।

दीप का हवाओं से,
मरहमो का घाव से,
त्याग का लगाव से,
मेरा निज स्वभाव से,
संघर्ष जारी है

तितलियों का शूल से,
दर्पणों का धूल से,
इच्छा का उसूल से,
मेरा पुरानी भूल से,
संघर्ष जारी है।

सत्य का प्रमाण से,
शब्द का ज़ुबान से,
पांव का थकान से,
मेरा स्वाभिमान से,
संघर्ष जारी है।

दृष्टी का दृष्टिकोण से,
भिक्षु का अपने द्रोण से,
उच्चतम का गौण से
मेरा अपने मौन से।
संघर्ष जारी है।

वासना का प्रीत से,
सत्य का प्रतीत से,
तुकबंदियों का गीत से,
मेरा निज अतीत से।
संघर्ष जारी है।

कल्पना का ज्ञान से,
मन का मन के ध्यान से,
शमशीर का मयान से,
मेरा मेरे ईमान से,
संघर्ष जारी है।

राम का स्वधर्म से,
भरत का राजकर्म से,
सिया का मृगचर्म से,
मेरा हृदय के मर्म से।
संघर्ष जारी है।