Friday, 29 October 2021

ढूंढता है।

अजीब शख़्स है, हर बात का मतलब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

वो शिद्दत, इज़ाफ़ी, वो इश्क़ औ वो क़ुरबत,
मैं तब ढूंढता था वो अब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

यही फ़र्क़ दोनों के इश्क़ औ तलब में,
मैं आंखे, पेशानी, वो लब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

मैं होता हु अक्सर तब महसूस उसको,
बंद आंखों से मुझको वो जब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

इल्म हो ना हो उसको, मुझे खो चुका है,
बस अब देखना है की कब ढूढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

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