Saturday, 29 November 2014

नज़र आता है...


दिल पे बीती हो तो आँखों तक असर आता है,
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

तेरे हर जुल्म को शेरो में कहा, पाक किया,
बस शायरों को ही मुनफ़रिद हुनर आता है.
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

हर एक बात को उस मोड़ तक ले आता हु,
कोई सबब से जहा तेरा जिकर आता है.
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

कुछ अधूरे ख़याल



ऐतराज़ है मेरी मयकशी से तुम्हे।
कोई क्या गम न होगा मेरी खुदखुशी से तुम्हे?
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शाम कुछ ऐसे इन दिनों गुजरती है,
हलक से जैसे मय जलती हुई उतरती है.
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ज़िन्दगी जिसकी है उसके मुताबिक़ जी जाये,
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.

हयात ज़िद पे है मै उसके इशारो पे चलु
मेरी कोशिश है सूरत-ए -ज़िंदगी बदली जाये।
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.

Wednesday, 27 August 2014

क्या वैसे ही हम है?

जैसा हम सोचते है, क्या वैसे ही हम है?
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

इश्क़ बेशक है लेकिन जरा ये भी सोचो,
हमारी जरुरत से ज्यादा है, कम है?
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.


इश्क़ में भी मिलावट है कितनी जियादा,
उम्मीदे, तकाज़े, कुछ शर्त औ कसम है.
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

इश्क़ ऐसा हो, सजदा भी हो, रिँदगी भी,
वही मयखाना और दैर-ओ-हरम है।
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

Saturday, 16 August 2014

दोहे



लिबास बदला रिश्ते का, है वही पुरानी जां,
ज्यों ज्यों बूढी हो रही, बेटी लगे है माँ।

बड़ा सरल और साफ़ है रिश्तो का आधार,
जितनी मुझसे जरूरते, उतना मुझसे प्यार।

एक ही जीवनकाल में बदले दो किरदार,
जो घर का सरदार था,अब वहीं है पहरेदार।

अपने अपने तौर से दोनों ने जताया प्यार,
माँ ने सुसंस्कार दिए, पीता ने कारोबार।

Wednesday, 13 August 2014

Thursday, 31 July 2014

Thursday, 24 April 2014

Ek Nazm

दफ्तर से लौटकर जब घर क दरवाजा खोलता हु,
तन्हाई दौड़कर लिपट जाती है मुझसे
ख़ामोशी दिनभर कि सारी बाते दोहराती है
खिड़किया खोलता हु तो हवा बालोँ को सहलाती है
फिर आईने मे खुदको देखता हु, सुकून मिलता है
की इस घर मे एक और चेहरा अब भी रहता है
बिस्तर कि सिलवटे सुबह से शाम तक वैसी हि पडी रहतीं है,
सुस्त, थकी हुई
तुम्हारे जाने के बाद इन सब ने हि तो संभाला है मुझे,
पर अब डर सा लगता है
की कोई फिरसे आकर इन्हे निकाल न दे घर से,
आदत सी हो गयी है अब इनकी, उतनी हि जितनी कभी तुम्हारी थी
अब मै नहीं चाहता की दरवाजा खुलने पे
कोई और आकर लिपट जाये मुझसे,
अब किसी और से दिन कि सारी बाते नहीं बाट पाउ शायद
ये तन्हाई तुमने दिया हुए आख़री तौफा है मेरे पास,
इसे भी खो दिया तो क्या बचेगा फ़िर मेरे पास.

किसी और के होने से भी बेहतर है तेरा ना होना।