ऐतराज़ है मेरी मयकशी से तुम्हे।
कोई क्या गम न होगा मेरी खुदखुशी से तुम्हे?
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शाम कुछ ऐसे इन दिनों गुजरती है,
हलक से जैसे मय जलती हुई उतरती है.
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ज़िन्दगी जिसकी है उसके मुताबिक़ जी जाये,
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.
हयात ज़िद पे है मै उसके इशारो पे चलु
मेरी कोशिश है सूरत-ए -ज़िंदगी बदली जाये।
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.
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