Tuesday, 8 May 2012

 
तरफदारी
मै जानता हु मेरे साथ तू होशियारी करता है.
मेरा दिल फिर भी तेरी तरफदारी करता है.

किसीको अपना बनाने के लिए जाल बिछाना,
ये आशिक नहीं करता, कोई शिकारी करता है.
मेरा दिल फिर भी तेरी तरफदारी करता है.

मै तेरे इस गुनाह को हुनर का नाम कैसे दु?
बच्चो का वास्ता देकर, तू गद्दारी करता है
मेरा दिल फिर भी तेरी तरफदारी करता है.

एक मौसम लिए जाता है एक वादे के एवज में
इश्क भी जालिम मुझसे 'सरकारी' करता है.
मेरा दिल फिर भी तेरी तरफदारी करता है.

Saturday, 7 April 2012

तुम ये आँखों से

तुम ये आँखों से क्या क्या बयाँ करते हो,
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.


बड़ी शिद्दत से झांकते हो मेरी आँखों में,
नज़र मिलालू अगर मै तो भला डरते हो.
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.

आईने रूठ जायेंगे अहतियात करो,
मेरी आँखों में खुदको देखकर सवरते हो
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.

कभी आज़ाद करो खुदको भी जुल्फों की तरह,
क्यों यु सहमे हुए बाँहों में बिखरते हो.
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.
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आँखों में छुपाकर लायी थी तुम, इश्क जो मुझको देना था,
बस नज़रे उठाकर देखा मुझको , एक पल में सारा लुटा दिया.

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Monday, 2 April 2012

कशमकश...

बड़ी देर से साहिल पे कशमकश में ठहरा हु,
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

तजुर्बे कीमती होते है, मेरा सब कुछ है अब गिरवी
रूह मुझमे थी बचपन तक, मगर अब सिर्फ चेहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

इसपे हैरां रहू, रोऊ या अनदेखा करू?
जिस माथे की रौनक था, उसी माथे का सहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

Monday, 12 March 2012

मेरी हकीकत जान लेते हो...

मेरे चेहरे को पढ़ते हो, सच मान लेते हो,
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.


नज़र में अब भी वो सवाल क्यों रखे खामखाँ.
किस हक से मेरी जाँ अब इम्तिहान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.

ये मोहब्बत ही है, महज हमदर्दी नहीं होगी?
सूना है आज भी मुझे नाम से पहचान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.

मुझे तो हक भी 'शफक' अपने बाकर्ज़ मिले है.
ताजूब है, बड़े हक से तुम अहसान लेते हो.
सोचते हो, की मेरी हकीकत जान लेते हो.

Friday, 3 February 2012

Random Lines...

मुद्दतो बाद निजात मिली है महफ़िलो से,
मुद्दतो बाद खुदसे लिपटकर रोया हु,

उफ़! तेरा जाना भी मुझे कुछ देकर गया.
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कल रातभर टपकती रही रोशनी चाँद से,
मेरे कमरे के खुश्क अँधेरे से निजात मिली,

ऐसे ही एक चाँद था मेरा, रूह को रोशन करता था.

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कल रातभर धुन्धता रहा गज़लों में,
सारी गज़ले अशआर अशआर कर देखली,

एक लम्हा संभलकर रखा था गज़लों में, हा तुझसे ही बाबस्ता

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बहोत देर तक उस बज़्म की रूमानी में कैद रहा,
अँधेरे कोनो में धुन्ड़ता रहा तेरी गैर मौजूदगी.

किसी और के होने से भी बेहतर है, तेरा ना होना.

Friday, 9 December 2011

चाँद खिड़की पे..

चाँद खिड़की पे ठहरा रहा रातभर,
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.


आँख जलती रही और पिघलती रही,
सर्द मौसम में सहरा रहा रातभर.
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.

ओस की बूंद थी या चाँद का दर्द था ?
सदमा क्या था की गहरा रहा रातभर?
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.

Wednesday, 16 November 2011

रात तनहा सहर तक जाएगी...

शाम फिर खाली हाथ आएगी,
रात तनहा सहर तक जाएगी.


करवटों में, कभी सुनी छतो पे,
रात क्या नींद ढूंड पायेगी?
रात तनहा सहर तक जाएगी.

चाँद खिड़की से झाकेगा आदतन,
चांदनी फिरसे दिल जलाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.

लफ्ज आँखों में झिलमिलायेंगे
नज़्म तकिये में सर छुपाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.