Thursday, 7 July 2011

सख्त हो रहा है

ये क्या यकलख्त हो रहा है,
सबका लहजा क्यों सख्त हो रहा है?


नींद की गहराई नहीं नापती अब रातो को,
घडी देखो जरा क्या वक़्त हो रहा है.
सबका लहजा क्यों सख्त हो रहा है?

परिंदों को जरा सोचना होगा
क्यों खुदगर्ज ये दरख़्त हो रहा है?
सबका लहजा क्यों सख्त हो रहा है?

Tuesday, 28 June 2011

त्रिवेणी

कुछ तस्वीरे निकाल ली थी उसने एल्बम से,
बहोत प्यार से खिचवाई थी कभी हमने,

काश कुछ पन्ने ज़िन्दगी के भी निकाल पाते हमेशा के लिए.

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तुमने जाते हुए मुस्कुराकर देखा था मेरी ओर,
लगा था तुम जरुर लौटकर आओगी.

यकीन नहीं होता एक मजाक क्या क्या कर सकता है.

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पहले इन्ही बातो में दिन गुजारा करते थे हम दोनों,
अब वो सारी बेमतलब की बाते फिजूल लगती है.

कुछ मेरी नजर बदलती गयी कुछ तुम चेहरे बदलते गए.

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Monday, 27 June 2011

हथेली

कल गौर से देखा अपनी हथेली को,
कितनी लकीरे, कुछ गहरी, कुछ धुंदली सी,
आधी अधूरी कई लकीरे एक दूजे में उलझी हुई,
क्या पता क्या मायने है इनके, है भी या बस यु ही है ये सब.
मुझको अब भी याद है लेकिन,
उस दिन तुमने मेरी हथेली में अपनी लकीर दिखाई थी,
कितनी गहरी और पूरी थी उन दिनों,
उस लकीर के अलावा किसी और का मायना नहीं पता था मुझको,

अब वो दोनों लकीरे धुंदली है,
बस एक निशान भर बचा है उसके होने का.
तुम्हारी लकीर मेरे हाथो से अब बस मिटने को है,
एक और लकीर भी मिट जाएगी यक़ीनन मेरे उम्र की.

Thursday, 2 June 2011

फुरकत के बाद........

अंजाम ये हुआ इश्क का फुरकत के बाद,
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.


मैंने यु भी ली है रंजिश खुदा से, खुदाई से,
कभी चाँद नहीं देखा तुझसे रुखसत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.

वक़्त रेंगता है लम्हा दर लम्हा बेजान सा.
लम्हों में रूह आ गयी थी तेरी शिरकत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.

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Friday, 13 May 2011

त्रिवेणी :


बस उसने हाथ छुड़ाया और चली गयी
फिर कभी मुड़कर नहीं देखा मुझको.

उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है.

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चाँद सहमा हुआ था कल रात,
सारे शहर में सन्नाटा था.

मेरे लिए दोनों जहाँ थी वो.
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कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.

ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
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Tuesday, 10 May 2011

अब वक़्त है....

अब वक़्त है, बेहतर मौजूदा हालात करू,
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.


सारे तजुर्बो और शिकस्तो से सिखु,
और कुछ काबू में ये अल्हड जज्बात करू.
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

वक़्त ने करवट अबके मेरी तरफ ली है,
जो तुने किया था क्या वो तेरे साथ करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

इस सवाल का तू ही जवाब है 'माँ' शायद,
किसकी गोद में सर रखु, कहा रात करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

Monday, 9 May 2011


कल रात दफ़न कर आया हु


कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.

अश्को से नहलाया पहले,
आहो से फिर पोछा भी,
तेरी यादो का अत्तर छींटा,
पलकों के सहारे बैठाया फिर,
सारी खोकली बाते रखदी,
सारे झूटे वादे परोसे,
जो बहोत पसंद थे ख्वाबो को,
फटी पुराणी, काफी खस्ता,
रिश्ते की फिर चादर ली,
सारे टुकडे जोड़े फिरसे
दिल की तसल्ली की खातिर,
और कफ़न में रखे सारे,
अश्को के कुछ फुल बिछाए.
बड़ी हिफाजत से ढंका फिर,
उस मासूम से चेहरे को,
अब तक पलकों की शान थे सारे,
अब कांधे पे बोझ ही थे,

कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.