तब धूप थी, अब छांव है।
दोनों ही बस पड़ाव है।
जो ना मिले तो छोड़ दे,
कोई लत नही है, लगाव है।
कैसे लडूं उसके खिलाफ,
जिसके तरफ़ ही झुकाव है।
वैसे मैं इतना बुरा नही,
कुछ मेरे पर भी दबाव है।
है मुल्क में सब ख़ैरियत,
बस सरहदों पे तनाव है।
तेरा फैसला, हक़ में मेरे?
अब देखते है क्या दांव है।
वो हसके कहता, हूँ गलत,
क्या बेहतरीन बचाव है।
उसने हिदायत ही तो दी,
बस कह रहा था सुझाव है।
दरिया की मर्ज़ी पे सवार,
क्या हैसियत ए नांव है।
बड़ी सर्द लगती है ज़िन्दगी,
एक उसकी सोबत अलाव है।
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