मंज़िल की तलब, सफर की थकान, सोने नही देते।
हालात, नाराज़ हो कि मेहरबान, सोने नही देते।
मैं अपनी नेकियां दरिया में डाल दु लेकिन,
हुए है मुझपे जो अहसान, सोने नही देते।
हालात, नाराज़ हो कि मेहरबान, सोने नही देते।
जिसे बाख़ौफ़ रखा है, नतीजे की फिक्र ने
उसे तैयारी औ इम्तेहान, सोने नही देते।
हालात, नाराज़ हो कि मेहरबान, सोने नही देते।
जगाये रखता है डर दिन की रोशनी का मुझे,
शाम तनहा, रात सुनसान, सोने नही देते।
हालात, नाराज़ हो कि मेहरबान, सोने नही देते।
समंदर ज़र्फ, सब कुछ निगल जाता है आखिर में,
बारहा जब उसे तूफान, सोने नही देते।
हालात, नाराज़ हो कि मेहरबान, सोने नही देते।
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