मेरी रंजीश किसीसे यु ज़ाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
तरन्नुम नहीं, है तसव्वुर की कायल,
गज़ले पढ़ती है, वो गुनगुनाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
तुम चाहो तो पुरज़े जलाकर के देखो,
कोई आग यादे जलाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
हम दरिया है, खामोश, गहरा सा कोई,
समंदर के तरहा जज़्बाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
कई साज़िशों के है किस्से इन्हीमे,
ये आँखे जो कुछ भी बताती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
शहरी तरीके, सोच औ समझ भी,
अब देहातो में कोई देहाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
खर्च करनी पड़ेगी कई ख़ास चीज़े,
ज़िन्दगी मुफ्त में कुछ सिखाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
खुदा, जो अहम् है, तेरे हाथ में है,
नशे में भी साँसे लड़खड़ाती नहीं है।
बस ये दुनिया समझ में आती नहीं है।
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