उधेड़ने लगा है...
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
तेरे लहजे में मेरी गज़ले पढ़ने लगा है,
कीस सहरा में निचोड़ आउ ये अश्क-ए-समंदर,
बोझ पलको का बहोत ज्यादा बढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
सुबह सुकून से गुजारी तेरे आँचल में माँ,
सूरज ज़िन्दगी का अब मगर चढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
भर गया दिल खिलोने से शायद बच्चे का,
पहले खिलखिलाता था, अब उखड़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
4 comments:
Koi bhi jakhm is kadar chupana chahiye ki koi udhedneki soch bhi na sake.
MaaKe pas sare jakhmoke elaz hote hai. She is always Great!
VEry nice creation.
Thanks...
कीस सहरा में निचोड़ आउ ये अश्क-ए-समंदर,
बोझ पलको का बहोत ज्यादा बढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है
bahut wazan hai in shabdon mein....
na likh itna ki bahak n jaaun main
ki nasha tere likhne ka chadhne laga hai....
keep writing...i love it...
Thanks a lot...
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