Thursday, 31 July 2014

Thursday, 24 April 2014

Ek Nazm

दफ्तर से लौटकर जब घर क दरवाजा खोलता हु,
तन्हाई दौड़कर लिपट जाती है मुझसे
ख़ामोशी दिनभर कि सारी बाते दोहराती है
खिड़किया खोलता हु तो हवा बालोँ को सहलाती है
फिर आईने मे खुदको देखता हु, सुकून मिलता है
की इस घर मे एक और चेहरा अब भी रहता है
बिस्तर कि सिलवटे सुबह से शाम तक वैसी हि पडी रहतीं है,
सुस्त, थकी हुई
तुम्हारे जाने के बाद इन सब ने हि तो संभाला है मुझे,
पर अब डर सा लगता है
की कोई फिरसे आकर इन्हे निकाल न दे घर से,
आदत सी हो गयी है अब इनकी, उतनी हि जितनी कभी तुम्हारी थी
अब मै नहीं चाहता की दरवाजा खुलने पे
कोई और आकर लिपट जाये मुझसे,
अब किसी और से दिन कि सारी बाते नहीं बाट पाउ शायद
ये तन्हाई तुमने दिया हुए आख़री तौफा है मेरे पास,
इसे भी खो दिया तो क्या बचेगा फ़िर मेरे पास.

किसी और के होने से भी बेहतर है तेरा ना होना।

Tuesday, 22 April 2014

बिखर जाऊ

जिस्म की बंदिशों से निकलू, सवंर जाऊ,
समेटना मत जो अबके बिखर जाऊ.

मै ताउम्र रहूँगा तेरे उम्मीदों-ओ-ख्याल में,
महज़  दौर नहीं हु की गुजर जाऊ.
समेटना मत जो अबके बिखर जाऊ.

तेरे काबु में है नज़र से दूर करना मुझे,
मुमकिन ही नहीं दिल से भी उतर जाऊ.
समेटना मत जो अबके बिखर जाऊ.

Saturday, 5 April 2014

Random Lines

ना मना सका, ना रूठ सका, 
ना हासिल है, ना छूट सका. 
क्या रिश्ता है उलझा उलझा, 
ना जुड़ा रहा, न टूट सका. 
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रूठे भी, चिल्लाये भी, 
शिकवे गीले सुनाये भी, 
इतना इश्क तो बाकी था, 
की लढने पे पछताये भी. 
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कौन गलत और कौन सही, 
सबब नया पर बहस वही, 
अब कौन झुकाये सर अपना, 
रिश्ता टूटे पर अहम् नहीं।

Monday, 24 February 2014

Ek Gazal...


यक़ीनन दिल में दोनोके बहोत सा प्यार रहता है,
मगर रिश्ता दरमियां का रोज़ बीमार रहता है.

बड़ी जद-ओ-जहद से हासिल छे दिन की कमाई का,
लुत्फ़ लेकिन उठाने को बस एक इतवार रहता है.
मगर रिश्ता दरमियां का रोज़ बीमार रहता है.

ज़हन उलझा हुआ दिन रात नफ़ा नुक्सा कि बातो में,
और कमरे की दीवारो पे गीता सार रहता है.
मगर रिश्ता दरमियां का रोज़ बीमार रहता है.

Thursday, 23 January 2014

सम्भाला है..

बुलंदी पे रहे लेकिन वो अपनापन सम्भाला है,
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.

गहनो से जियादा महफूज रखती है खिलौनो को,
हर एक संदूक में माँ ने मेरा बचपन सम्भाला है.
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.

फिसल जाऊ जवानी में ये मुमकिन ही नहीं लगता
बचपन से ही मेलो में अपना मन संभाला है.
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.
.........

चल समझौता करले...

ज़िंदगी छोड़ सब तकरार, चल समझौता करले,
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

 ये रिश्तो के बही खाते, नफ़ा नुकसान की बाते,
मुझे आता नहीं व्यापार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

कई रिश्ते कई पहलू, ये उम्मीदे ये आरजू,
निबाहू कैसे सब किरदार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

मै यु सब में बटा, आखिर किसीका भी ना हो पाया,
माँ भी कहती है अबकी बार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

अच्छा होना नहीं लेकिन अच्छा लगना जरुरी है,
मुझसे होगा न ये श्रृंगार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।