Sunday, 31 October 2021

जाने दे

जो हुआ, वो गुज़र गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

मंज़िल, रस्ता, वही है अब भी, वैसे ही,
छोड़ के बस हमसफर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

हालात सबब थे फुरक़त का तो कोशिश कर,
वो अपनी मर्ज़ी से अगर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

देख पुरानी ग़ज़ले खुदकी पढ़ने में,
कोई ज़ख्म पुराना उभर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

दोनों ज़िम्मेदार हो तुम इस दूरी के,
तू इधर रहा, वो उधर गया है, जाने दे।
दिन दरिया में उतर गया है, जाने दे।

Friday, 29 October 2021

ढूंढता है।

अजीब शख़्स है, हर बात का मतलब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

वो शिद्दत, इज़ाफ़ी, वो इश्क़ औ वो क़ुरबत,
मैं तब ढूंढता था वो अब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

यही फ़र्क़ दोनों के इश्क़ औ तलब में,
मैं आंखे, पेशानी, वो लब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

मैं होता हु अक्सर तब महसूस उसको,
बंद आंखों से मुझको वो जब ढूंढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

इल्म हो ना हो उसको, मुझे खो चुका है,
बस अब देखना है की कब ढूढता है।
बस मुस्कुराने के लिए भी सबब ढूंढता है।

मैं

मैं ही अपनी तलब रहा हु, मैं ही अपना नशा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त से कहदो, इस लम्हे में, जिस्म है मेरा, मैं ना हु,
कबका आगे निकल चुका मैं या फिर पीछे रुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

कई चेहरे है, कई है पहलू, कई किरदार निभाता हु,
मेरे जैसा भी मैं ही हु, और कुछ खुदसे जुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

आंखे बंद कर, बूत के आगे, जब अपना सर रखता हूं,
कई दफा ये लगता है, 'मैं' खुदके आगे झुका हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।

वक़्त हो जैसे बहता दरिया, सारे मौसम साथ लिए,
हयात की कश्ती में बैठा, बेइल्म सा नाख़ुदा हु शायद।
मैं ही अपना गुनाहगार था, मैं ही अपना खुदा हु शायद।