गुनाहों की जैसे सज़ा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
हम ज़िंदा है, इतना ही काफ़ी है जाना,
ये ना पूछो की कैसे, कहां जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
कई रोज़ से रूह बीमार है और,
जिस्मानी, बरा ए दवा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
उम्र वैसे तो कबकी खतम हो गयी थी,
इन दिनों तो तुम्हारी दुआ जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
ज़िन्दगी जैसे माशूक़ हो बेवफा सी,
शफ़क इन दिनों जीस तरह जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
ज़िन्दगी से बड़ा इश्क़ कोई नही है,
तुम ज़िंदा वहां, हम यहां जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
वो लम्हे, वो रिश्ते फ़ना हो चुके है,
क्यो उन्हींको भला बारहा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।
1 comment:
ज़िन्दगी से बड़ा इश्क़ कोई नही है!
Superb thought 👍🏻👍🏻
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