बचपन औ जवानी क्षण क्षण जब कर्तव्य आग में जलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
पथ्थर पथ्थर बट जाते है,
पर्वत सारे कट जाते है,
जब शांत सरल अल्हड नादिया
अपनी रफ़्तार से चलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
एक पीढ़ी की निवृत्ती पर,
दूजी को मिलता है अवसर,
जब नवल अरुणोदय के लिए,
एक शाम पुरानी ढलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
प्रकृति सी प्रकृति हो,
परिवर्तन को स्वीकृति हो,
जो धूप सुखाये नदियो को,
उसी धूप में हीम पिघलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
कई मौसम पीछे जाते है,
हम अविरत सींचे जाते है,
कर्म के पौधों की कलियां,
खिलते खिलते तब खिलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
पथ्थर पथ्थर बट जाते है,
पर्वत सारे कट जाते है,
जब शांत सरल अल्हड नादिया
अपनी रफ़्तार से चलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
एक पीढ़ी की निवृत्ती पर,
दूजी को मिलता है अवसर,
जब नवल अरुणोदय के लिए,
एक शाम पुरानी ढलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
प्रकृति सी प्रकृति हो,
परिवर्तन को स्वीकृति हो,
जो धूप सुखाये नदियो को,
उसी धूप में हीम पिघलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
कई मौसम पीछे जाते है,
हम अविरत सींचे जाते है,
कर्म के पौधों की कलियां,
खिलते खिलते तब खिलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।
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