मन में सौ परपंच है, मुख में मंत्रोपचार,
ऊपरी सब उपचार है, भीतर सौ बीमार।
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मनुज जाति के वास्ते ये उच्चकोटि बैराग
ना संसार की चाकरी ना संसार का त्याग।
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देखावा बाहर किया और भीतर कमज़ोर।
दरिया जो गहरा होगा नहीं करेगा शोर।
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