Saturday, 5 December 2015

एक ज़माना लगेगा

कह गयी उसकी चश्म-ए-तर जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

तू आघोश में है, तो यु लग रहा है।
शाम से मिल गयी दोपहर जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

इस साल में भी चंद साँसे बची है,
ये मर जाएगा दिसम्बर जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

ए कुचो औ गलियों सब अच्छा बताना,
वो पूछेगा मेरी खबर जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

ज़िन्दगी को जो महबूब कहने लगे हो
इश्क घटने लगेगा उमर जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

मंजिलो की ही जिद हो क्योकर 'शफ़क़' को,
तजुर्बा तो देगा सफ़र जाते जाते।
एक ज़माना लगेगा असर जाते जाते।

Monday, 30 November 2015

रात कुछ और जले..

रात कुछ और जले, पिघल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

वो नज़र चुराकर यु निकला पहलू से,
वक़्त से बचकर जैसे कोई पल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

जितना जीना था जलना था, जल चूका हु,
सूरज से कहदो की अब तो ढल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

इतनी शिद्दत से मौत को गले लगाया है,
ज़िन्दगी देख ले अगर तो जल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

संभल के गुफ्तगू करना, हबिबो से रकीबो से,
बातो बातो में मेरी बात न निकल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

पहले वो, फिर उम्मीद अब यादे उनकी,
रेत हाथो से जैसे फिसल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

कभी जो टूटकर रोने लगो तो मुमकीन है,
सबके रहते भी तुम्हे मेरी कमी खल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

ये तो तौहीन है 'शफ़क़' मयखाने की,
नशे में भी उसके जिक्र पे संभल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

Tuesday, 24 November 2015

किधर जाऊ

किसकी जानिब देखू, किधर जाऊ,
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

असर ताउम्र रहेगा मेरे होने, ना होने का
मै वो दुआ नहीं जो बेअसर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

माँ तू ही कहती थी बड़ा मासूम दिल हु मै,
अब तू ही कहती की मै सुधर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

हालात खिंच के ले जाते है मयखानो में,
मै तो चाहता हु हर शाम अपने घर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

खुदा संभाल मेरे ख्वाब,उम्मीदे औ हसरते,
आखरी सफ़र में कम से कम बेफ़िकर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

Monday, 2 November 2015

कैफियत

बेफिक्री, आवारगी, कैफियत कितनी,
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

चाँद ने बस एक रात की छुट्टी लेकर,
तारो की बढ़ा दी है अहमियत कितनी।
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

इश्क औ हालात, मुकद्दर औ मरासिम,
ज़िन्दगी मेरी है पर मेरी मिल्कियत कितनी?
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

उसने सोचा ही नहीं राह ए मोहब्बत में 'शफ़क़',
मुश्किलें कितनी है सहूलियत कितनी।
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

वज़ारत

ये सितम ये अंदाज़ ए हिक़ारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

कयी पत्थर दफ़्न हुए है बुनियाद की सूरत,
बुलंद ऐसे ही कोई ईमारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

उन्ही में होती है साजिशे हजारो,
वो आँखे जिनमे कोई शरारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

अनकही बाते

जहन में रखी है कुछ अनकही बाते,
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

गुफ्तगू है फिर भी ये ग़लतफ़हमिया,
क्या होता जो होती ही नहीं बाते।
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

ये लहज़ा, नज़र औ सलीके का असर है,
बुरी लगती है भला सिर्फ कही बाते?
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

ये हूनर मुश्कील है सच्चाइ पसंद लोगो में,
सही वक़्त पे करना अक्सर सही बाते।
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

Thursday, 23 July 2015

Tuesday, 14 July 2015

Saturday, 27 June 2015

Monday, 22 June 2015

हिसाब करदे...

फ़ना सारे उम्मीदों ओ ख्वाब करदे
ज़िन्दगी चल मेरा हिसाब करदे।

बरसने से पहले पिलु बेहतर है,
मेरे अश्को को बस शराब करदे।
ज़िन्दगी चल मेरा हिसाब करदे।


रंजिशे और भी है खुदसे मेरी,
ये तन्हाई कुछ और आबाद करदे।
ज़िन्दगी चल मेरा हिसाब करदे।

ये हूनर नज़रो का होता है 'शफ़क़',
बस देखे, चेहरे को किताब करदे।
ज़िन्दगी चल मेरा हिसाब करदे।

Friday, 10 April 2015

तन्हाई है...

कुछ चीज़े है, परछाई है।
मै हु और तन्हाई है।

चेहरे से नज़र नहीं आता,
समंदर हु, गहराई है।
मै हु और तन्हाई है।

तू था ही नहीं मुकद्दर में
यक़ीनन महज़  सफाई है?
मै हु और तन्हाई है।

मेरे होने से सब रिश्ते,
चुभती है? सच्चाई है।
मै हु और तन्हाई है।

नोक झोक में उधड गयी,
बड़ी कच्ची तुरपायी है।
मै हु और तन्हाई है।

Sunday, 1 March 2015

बाते



तुझसे बाबस्ता कुछ अनकही बाते,
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

हम कस्मे, वादे, उसूलो का नाम देते थे,
महज बाते ही थी  रही बाते।
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

मै अक्सर रो देता हु हसते हसते,
मैंने चाहा मगर, कुछ भूली नहीं बाते।
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

नज़रिया, हालात औ वक़्त के तकाज़े पे,
अक्सर गलत हो जाती है कुछ सही बाते।
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

बस दो लफ्जो का सवाल था उसका,
जवाब में रातभर फिर बही बाते
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

अब हम वायीजी से टाल जाते है।
कभी कितना सुकूं देती थी यही बाते।
जहन में ताज़ा हुयी कल वही बाते।

Monday, 16 February 2015

बड़ा मुश्किल है

बड़ा मुश्किल है किसी बात को शुरू करना,
फिर संजीदगी से उसपे गुफ्तगू करना।

दुरुस्त ऐसे ही होते है बिगड़े रिश्ते,
फटे कपड़ो पे उसी धागे से रफू करना।
फिर संजीदगी से उसपे गुफ्तगू करना।

ये सुकूं तो है पर दिल कहा भरता है "शफ़क",
तेरी पहलू में रहना, तेरी जुस्तजू करना।
फिर संजीदगी से उसपे गुफ्तगू करना।

रूबरू तुझसे हु लाजिम है आँखों की नमी,
जरुरी है पहले सजदे के वज़ू करना।
फिर संजीदगी से उसपे गुफ्तगू करना।

Thursday, 22 January 2015

ज़िंदगी जारी रही

जख्म उबलते रहे, गमख्वारी रही,
सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

दिल हल्का हुआ करता था तेरी सोबत में,
धड़कने रातभर सीने में कल भारी रही।
 सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

तू था तो तेरी अहमियत न थी मुझको ,
तेरे जाने के बाद तेरी खुमारी रही।
सास चलती रही,ज़िंदगी जारी रही।

ये कैसा खेल था अंजाम क्या हुआ इसका?
मै ना जीत सका ताउम्र तू भी हारी रही।
सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

Monday, 12 January 2015

दिल डरा सा है...

उसकी चुप्पी में मशवरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

कई उम्मीदे दफ़न है इसमें,
मेरा दिल मक़बरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।


ज़िंदगी सहरा हुयी है फिर भी,
लहजा अब भी हरा भरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

फासले इतने बढ़ गए कैसे?
फर्क दोनों में बस ज़रा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।