Thursday, 18 August 2011

'शफक'

खुश्क आँखों से कभी ये जहां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'


तेरी ग़लतफ़हमी है, तू तनहा है इस सफ़र में,
नज़र घुमा के जरा कारवां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'

तेरे हर्फो को जान दी है उसकी तरन्नुम ने.
ग़ज़ल को छोड़, उसकी जुबां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'

इश्क के नाम पे लुटा है क्या क्या लोगो ने.
कभी यु गौर से जरा आइना तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'

Tuesday, 16 August 2011

कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है

आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.
गौर से देखा लाशो को उनकी, अभी अभी के है सारे,
कितने मासूम है बच्चो से, हैरत है किसने मरे.
इस अजाब का गहरा असर है, पुरे चेहरे पे मातम है,
तनाव काफी है तसुरो में, और धड़कन कुछ मद्धम .
पलकों की बाहों में रखे है, कल तक आँखों का नूर थे वो,
ऐसा क्या था सोच रहा हु, की मरने को मजबूर थे वो?
मैंने सुना है, एक उम्मीदों की डोर थी दिल के कोने में,
उसके सहारे कई ख्वाब थे बेचैन, हकीकत होने में.
आँखों तक तो पहोच चुके थे, उस डोर को 'तुमने' तोड़ दिया,
अश्को को सैलाब भला क्यों, आँखों की तरफ ही मोड़ दिया.
बड़ी मशक्कत की लेकिन, बस मौत ही था अंजाम 'शफक'.
जिन आँखों में मौत हुई है, होगा उसपर ही इल्जाम 'शफक'.

आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.

Friday, 5 August 2011

परिंदे को आसमान दे दु.

अपने कमरे की तनहाई को जुबान दे दु,
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.


खुदा तादाद में है, मंदिरों औ मस्जिदों में,
मिल जाये, तो इस शहर को इंसान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.

खुदकुशी यु गर की जाये, तो खुद्दारी बनी रहे,
अपने नजरो से गिर जाऊ, अपनी जान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.

ग़लतफ़हमी है, इस खेल में मै जान हारूँगा.
इश्क औ उम्मीद हर जाऊ तो फिर ईमान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.