घर नहीं लगता.....
क्या पता क्यों अपना ये शहर नहीं लगता,
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
जबसे खो दिया है तेरी सहोबत को,
अब कुछ और खोने का डर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
उसने कुछ फासला अब भी रखा है दरमियाँ,
वो हमराह होगा, हमसफ़र नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
दुवाये दिल से होगी तो खुदा तक जाएँगी,
तेरी दुवाओ में वो असर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
फिजूल तलाशता है 'शफक' इश्क लोगो में,
इस राज का पता तो उम्रभर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
No comments:
Post a Comment