चाँद टीका था खिड़की पे...
कल रात अचानक ऐसे लगा तेरा चेहरा दीखा था खिड़की पे,
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.
पुरे फलक के तारे जोड़े कुछ अबरो की स्याही ली,
मैंने अपने हाथो तेरा नाम लिखा था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.
एक झलक तो देखा चाँद औ तेरी तस्वीर में डूब गया,
शब् भर उस महताब का तेवर बेहद तीखा था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.
वो शब् जब तुमने मुझसे आखरी रुखसत लेनी थी,
आधा अधुरा यही चाँद फीका फीका था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.
Tuesday, 29 June 2010
Thursday, 24 June 2010
घर नहीं लगता.....
क्या पता क्यों अपना ये शहर नहीं लगता,
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
जबसे खो दिया है तेरी सहोबत को,
अब कुछ और खोने का डर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
उसने कुछ फासला अब भी रखा है दरमियाँ,
वो हमराह होगा, हमसफ़र नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
दुवाये दिल से होगी तो खुदा तक जाएँगी,
तेरी दुवाओ में वो असर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
फिजूल तलाशता है 'शफक' इश्क लोगो में,
इस राज का पता तो उम्रभर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
क्या पता क्यों अपना ये शहर नहीं लगता,
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
जबसे खो दिया है तेरी सहोबत को,
अब कुछ और खोने का डर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
उसने कुछ फासला अब भी रखा है दरमियाँ,
वो हमराह होगा, हमसफ़र नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
दुवाये दिल से होगी तो खुदा तक जाएँगी,
तेरी दुवाओ में वो असर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
फिजूल तलाशता है 'शफक' इश्क लोगो में,
इस राज का पता तो उम्रभर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.
Wednesday, 23 June 2010
जलती रही आँखे
कतरा कतरा पिघलती रही आँखे,
कल रातभर जलती रही आँखे.
जानेवाले को ये मलाल न था.
साथ उसके कुछ दूर चलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
जिक्र पे उनके हर एक महफ़िल में,
लडखडाते रहे आंसू, संभलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
सहर होते ही चमकने लगी उम्मीदोसे,
शाम के साथ साथ ढलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
कतरा कतरा पिघलती रही आँखे,
कल रातभर जलती रही आँखे.
जानेवाले को ये मलाल न था.
साथ उसके कुछ दूर चलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
जिक्र पे उनके हर एक महफ़िल में,
लडखडाते रहे आंसू, संभलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
सहर होते ही चमकने लगी उम्मीदोसे,
शाम के साथ साथ ढलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.
Saturday, 12 June 2010
Ranjish.....
Ab har rishte ke har pahlu me ek ranjish lagati hai,
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai
Meri tarakki ko uthate the jo jo hath duvao me,
meri barbadi unke jivan ki aakhri khwahish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.
Kitni shiddat hoti thi jab wo muzko gale lagata tha,
ab un baho ke ghere me muzko bandish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.
Continue.....
Ab har rishte ke har pahlu me ek ranjish lagati hai,
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai
Meri tarakki ko uthate the jo jo hath duvao me,
meri barbadi unke jivan ki aakhri khwahish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.
Kitni shiddat hoti thi jab wo muzko gale lagata tha,
ab un baho ke ghere me muzko bandish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.
Continue.....
Thursday, 3 June 2010
कोई इतने करीब हो...
मै हर तहज़ीब औ तकल्लुफ खो दूँ , कोई इतने करीब हो,
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
कितनी उम्मीदे है, कितने ही चेहरे है मेरे,
मुझे अपनाले मै जो हूँ , कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
सजदे में हाथ उठे और दिल में खुदगर्जी,
मै दुआ जो भी मांगू उसे वो दूँ, कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
मै हर तहज़ीब औ तकल्लुफ खो दूँ , कोई इतने करीब हो,
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
कितनी उम्मीदे है, कितने ही चेहरे है मेरे,
मुझे अपनाले मै जो हूँ , कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
सजदे में हाथ उठे और दिल में खुदगर्जी,
मै दुआ जो भी मांगू उसे वो दूँ, कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.
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