जो हो चुका, होने को है, जो हो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।
हर चीज की मोहलत खतम होती ही है,
वो खो चुका, खो दूंगा ये, ये खो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।
वो जो बराबर था शरीक सबके गमों में,
देखो वही खुदसे लिपट के रो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।
मुमकिन नहीं उसको जगा पाना 'शफ़क',
जो बस दिखावे के लिए ही सो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।
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