वो सूरज और चाँद, पीपल की छाँव छोड़के आया हु।
शहरी मोहल्लों से भी बड़ा घर गाँव छोड़के आया हु।
क्या खुदगर्ज़ी, मनमर्ज़ी, खुदके पैरो पे खड़ा होने,
बूढ़े बाबा के थके कांपते पाँव छोड़के आया हु।
शहरी मोहल्लों से भी बड़ा घर गाँव छोड़के आया हु।
जिस मिट्टी का जाने में मुझपे कितना क़र्ज़ बकाया है,
उस मिट्टी की सीने पे कितने घाव छोड़के आया हु।
शहरी मोहल्लों से भी बड़ा घर गाँव छोड़के आया हु।
शहरी तरीके, ताहज़ीबे, आधुनिकता के एवज़ में,
सोच, समझ, संस्कार सहित बर्ताव छोड़के आया हु।
शहरी मोहल्लों से भी बड़ा घर गाँव छोड़के आया हु।
हो सकता है बहते बहते वो भी समंदर तक आये,
गांव लगे उस नहर में मैं एक नांव छोड़के आया हु।
शहरी मोहल्लों से भी बड़ा घर गाँव छोड़के आया हु।
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