ज़िन्दगी इतनी संगदिल, बेरहम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।
आँखों के हिस्से आंसू है जरुरत से ज्यादा,
लबो के नाम तबस्सुम इतनी कम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।
तू मुझे भूलने का दावा करता है तो फिर,
तेरी आँखों का किनारा अभी तक नम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।
जो तेरे खयाल पे भी हक़ नहीं है अब मेरा,
फिर ये सुखन ये पुरज़े ये क़लम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।
चाँद रोया है जमीं से लिपट के रात शायद,
हर एक शाख़ के फूलों पे ये शबनम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।