आंखरी सांस तक वो मेरी इम्तेहां लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।
मैं ये तक़दीर परस्ती से उभर तो जाऊ,
हाथ खुदसे फिर लकीरे नयी बना लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।
वो जिसे कोई ग़म नहीं है कुछ भी खोने का,
शिकस्त दे के उसे तू भी क्या मज़ा लेगा?
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।
मुआफ़ करता नहीं गलतियां, इंसा की तरह
वो हर गलती का कुछ तो मुआवज़ा लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।
वो दिल ओ दिमाग, दोनों में है बेहतर मुझसे,
इल्ज़ाम मुझपे रखेगा और खुद सज़ा लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।
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