Tuesday, 28 February 2017

टकराव पर


ज़हन औ दिल टकराव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

शाखों के हिस्से धुप लिखी,
जड़ो का हक़ है छाँव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

हम हद ए इश्क़ के पार हुए,
वो अब भी है लगाव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

जिंदा रहने की ख्वाहिश में,
यहां जान लगी है दांव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

बीच सफर हिम्मत टूटी,
इल्ज़ाम लगा है पाँव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

शहरों को बड़ा बनाने में,
बड़ा क़र्ज़ बढ़ा है गांव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

Friday, 24 February 2017

नज़र नहीं आते।

सभीको ये नायाब हुनर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

हर मुसाफिर को ढूंढनी है छाव अपने लिए।
किसी के वास्ते चलके शज़र नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

रास्ते गांव से शहर के है एकतरफा,
ये वापिस गांव फिर लौटकर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

नहीं ऐसा भी नहीं है की तुम्हे भूल गए,
हां अब याद भी इतने मगर नही आते।
मैं रोता हु, आंसू नज़र नहीं आते।

याद आने का भी सलिखा नहीं है तुमको,
इतनी शिद्दत से इस कदर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

ये अशआर 'शफ़क़' के कोई गुलाम नहीं है,
क्या हुआ बुलाने पे गर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

जागती है रात भी।

मेरी सब सुनती भी है,करती है अपनी बात भी।
मेरे साथ रोज़ सहर तक जागती है रात भी।

हालातो ने मुझे बनाया, मुझसे फिर हालात बने,
गुनाहगार दोनों ही है, मैं और ये हालात भी।
साथ मेरे हां सहर तक जागती है रात भी।

जाने क्या कुछ दांव पे है, इस रिश्ते की सूरत में,
एक तो मेरी जान लगी है, कुछ तेरे जज्बात भी।
साथ मेरे हां सहर तक जागती है रात भी।

मेरे सफर की हर राहे, तुझपे आकर रुकती है,
तू ही सफर, मंज़िल तू ही और तू ही शुरवात भी।
साथ मेरे हां सहर तक जागती है रात भी।

आ जाओ, सुलह हो जाए, मुझमे और ज़माने में,
खुद सब से बिगड़ गए है 'शफ़क़' के तालुखात भी।
साथ मेरे हां सहर तक जागती है रात भी।

Thursday, 16 February 2017

ख्वाब

आपस में उलझ पड़े कुछ ख्वाब।
बिल्कुल बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

यतीम कर गए थे तुम जिनको,
मेरी आँखों में पले बढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

कोई सोया था पुरसुकूं बाहों में,
रातभर मैंने पढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

बुलंदी, कामयाबी, नाम ओ इनाम,
ख़ामख़ा ही मढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

ख़त्म कब होगी क़तार आँखों पे,
थके गए खड़े खड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

मजबूरन सलवटों में छोड़ आया,
रात से ज्यादा बड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

रातभर नींद गुलशन सी रही,
शाख़ से ऐसे झड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

रात की ओढनी सितारों वाली,
रेशमी धागों से जड़ें कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

याद तेरी ही दिलाते है मुझे,
बेसबब यु ही अड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

Maa


ये ना पूछो

ये ना पूछो कैसे जागे, और फिर कैसे सोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

गिनती के दो चार ही लम्हे हल्की फुल्की बातो के,
उन यादो के भारी सफ़हे फिर बरसो तक ढोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

कोई अपना छूट गया था, सदियों तक ग़मगीन रहे,
और फ़लक को देखो उसने कितने तारे खोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

सफर में कितने फुल खीले, जाने कितने ख़ार चुभे,
कुछ कुदरत ने रख्खे होंगे, ज्यादातर हमने बोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

Monday, 13 February 2017

इम्तेहां लेगा।


आंखरी सांस तक वो मेरी इम्तेहां लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।

मैं ये तक़दीर परस्ती से उभर तो जाऊ,
हाथ खुदसे फिर लकीरे नयी बना लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।

वो जिसे कोई ग़म नहीं है कुछ भी खोने का,
शिकस्त दे के उसे तू भी क्या मज़ा लेगा?
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।

मुआफ़ करता नहीं गलतियां, इंसा की तरह
वो हर गलती का कुछ तो मुआवज़ा लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।

वो दिल ओ दिमाग, दोनों में है बेहतर मुझसे,
इल्ज़ाम मुझपे रखेगा और खुद सज़ा लेगा।
पहले हौसला, फिर उम्मीद फिर जां लेगा।