Saturday, 29 November 2014

नज़र आता है...


दिल पे बीती हो तो आँखों तक असर आता है,
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

तेरे हर जुल्म को शेरो में कहा, पाक किया,
बस शायरों को ही मुनफ़रिद हुनर आता है.
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

हर एक बात को उस मोड़ तक ले आता हु,
कोई सबब से जहा तेरा जिकर आता है.
छुपाऊ लाख फिर भी तो नज़र आता है.

कुछ अधूरे ख़याल



ऐतराज़ है मेरी मयकशी से तुम्हे।
कोई क्या गम न होगा मेरी खुदखुशी से तुम्हे?
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शाम कुछ ऐसे इन दिनों गुजरती है,
हलक से जैसे मय जलती हुई उतरती है.
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ज़िन्दगी जिसकी है उसके मुताबिक़ जी जाये,
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.

हयात ज़िद पे है मै उसके इशारो पे चलु
मेरी कोशिश है सूरत-ए -ज़िंदगी बदली जाये।
हर एक मसले पे बस खुद ही की राय ली जाए.