Sunday, 16 September 2012

रिश्ते

बड़े खामोश रहते है, सभी रूठे हुए रिश्ते,
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

ग़ज़ल के शेर में. तौफे में , पुरानी किताबो में,
ऐसे भी मिलते है  , कभी छूटे हुए रिश्ते
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

हजारो शक, दलीले, सख्त तर्कों की बहसबाजी
युही अपनी वकालत में अक्सर झूटे हुए रिश्ते.
मुझमे अब भी मुकम्मल है, मुझसे टूटे हुए रिश्ते.

Monday, 10 September 2012

रिश्ते

रिश्ते बनते है, बिगड़ते है, ख़तम नहीं होते .
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते .

बूढी आँखों को तजुर्बा है, परख भी है मगर,
ऐसा नहीं की उनको भरम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते .

कुछ तो हमने भी सवांरी है तुम्हारी हस्ती,
तुम क्या तुम बने होते, जो हम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

यक़ीनन तेरे न होने का बड़ा गम है मुझे,
तुम जो होते तो, कोई और गम नहीं होते?
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

ये तर्क, फलसफे तेरे, सबब-ए-फुरकत पे
सुनने में अच्छे है मगर, हजम नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.

तुझसे बाबस्ता तसव्वुर की है ये खुशनसीबी
हर ख्याल 'शफक' के  नज़म नहीं होते.
कौन होगा जिसे  ज़िन्दगी में गम नहीं होते.