Tuesday, 26 June 2012

जब अपनी हस्ती में होता हु..

जब अपनी हस्ती में होता हु,
खुद ही में कभी जब खोता हु,
समंदर को सिरहाने रखकर यु,
मौजो के तकिये पे सोता हु.

साहील पैरो को चूमता है,
बाँहों में समंदर झूमता है
बेजान रेत के सीने में,
मै दो नामो को बोता हु.

गहराई में हर राज़ मेरा,
है उथल पुथल अंदाज़ मेरा
पलको के किनारे खुश्क मगर,
आँखों में समंदर ढोता हु.

मै भी इतना ही फैला हु,
कही साफ़ कही कुछ मैला हु,
जब तू साहील बन जाती है,
मै भी तो समंदर होता हु.

Friday, 15 June 2012

Triveni : While Playing With Kapil......

उनको बड़ी शिकायत रहा करती थी मेरे रवैय्ये से,
बड़ी तहजीब पसंद थी वो, और मै बेफिक्र, अल्हड.

मिजाज़ बदल गया है मेरा, इरादा उनका बदलेगा कभी?
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उसके साथ कई रिश्ते रहे मेरे,
दोस्त बने, फिर इश्क हुआ, अब फकत जान पहचान है.

लिबास का रंग फीका पड़ता है वक़्त के साथ.

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मैंने वो हर चीज़ जो सीखी है.
सलीके से करता हु,

कम्बक्त! कोई इश्क क्यों नहीं सिखाता?
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उसने आखरी ख़त में अपना नाम लिखा था निचे,
पर सिर्फ नाम था "सिर्फ तुम्हारी" लिखना भूल गयी थी शायद.

बड़ा सलीका था उसमे, मर्ज भी लिफाफे में भेजा.

Wednesday, 13 June 2012

Random thoughts..

वो मेरी गज़ले पढ़ता है, पसंद करता है,
न मुझे देखा है कभी उसने, ना ही सूना है,
बस मेरे लफ्जो से जनता है मुझे,
मेरे चेहरे की कोई तसव्वुरत उसके जहन में शायद नहीं होगी.
पर कल मेरे लिए एक नज़्म लिखी उसने.
इससे बेहतर स्केच आजतक किसीने नहीं बनाई  मेरी,
मेरी रूह हुबहू उसके नज़्म जैसी लगती है.

कुछ बस 'रिश्ते' होते है, कोई और नाम नहीं होता उनका.

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जमाने बाद मुलाक़ात को बुलाया है उसने,
कुछ हिदायते दी है, कुछ नियम भी बनाये है,

वो शर्तो पे प्यार करती है , मै उसकी शर्तो को प्यार करता हु.