Friday, 23 July 2010

इश्क हो गया शायद...

कुछ मिल गया या कुछ खो गया शायद,
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.


खुशबु से सराबोर है क्यों हर अदा मेरी,
तेरे खयालो का अब्र भिगो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

क्यों परेशां है नज़रे किसे ढूंड रही है
नज़रे बचाकर सामनेसे वो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

क्या बात है क्यों हिचकिया बंद हो गयी,
मुझे याद करते करते वो सो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

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