Wednesday 10 July 2024

निकल आते है।

आंसू, गुज़रे ज़माने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

नींद जैसे ही उतरती है थकी आंखो में,
खयाल कितने सिरहाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

कई चीजे नज़र आती नही उजालों में,
तारे, सूरज को बुझाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

मैं जो तनहाई में तकता हूं आसमां की तरफ,
चेहरे खास ओ पुराने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

कई मसले जिनके हल निकलते ही नहीं,
ज़रा सा 'मैं' को झुकाने से निकल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

है कोई मोम सा बच्चा मेरे सीने में 'शफ़क़',
आसूं वही तो कहीं से पिघल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।

जीने मरने का फलसफा और कुछ भी नही,
मैले कपड़े कही ख़ला से बदल आते है।
कोई न कोई बहाने से निकल आते है।