साथ में जीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।
खुशियां छोटी छोटी थी,
मीठी दाल और रोटी थी,
ज्यादातर संघर्ष रहा,
किंतु उसमे में भी हर्ष रहा,
ना मद मत्सर ना क्षोभ रहा,
ना ईर्ष्या थी ना लोभ रहा,
जो भी संभव था किया किए,
जो दे सकते थे दिया किए,
हम चरित्र में उत्कृष्ट रहे,
समाधानी संतुष्ट रहे,
बस हालातों में ढलते रहे,
जैसे भी हो पर चलते रहे,
हसीं हसीं में गुजरे कुछ,
कुछ आंसू पीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।
प्रारंभ महल से सफर किया,
एक कमरे में भी बसर किया,
जीवनभर खुदको क्षीण किया,
पर बच्चों को स्वाधीन किया,
अगिनत समझौते किए मगर,
नैतिक मूल्यों पे जिए मगर,
विपदाओ में भी ध्यान रखा,
गिरवी ना स्वाभिमान रखा,
धन संचित करना ना आया,
जो पा सकते थे ना पाया,
विपरीत समय मजबूर भी थे,
पर फिर भीतर मगरूर भी थे,
कितने ही जीवन भरने में,
हमने रीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।
कुछ देर ठहर पीछे देखो,
कितने पौधे सींचे देखो,
ये इतने बरस समर्पण में,
चेहरा तो देखो दर्पण में,
ये झुर्री, लकीरें भालो पर,
ये उम्र के गढ्ढे गालों पर,
हम खर्च हुए कितना अब तक,
क्या मिला हमें उतना अब तक?
छोड़ो ये हिसाबी बाते है,
हमें कहां गणित ये आते है,
हम खुदके के लिए इंसाफ करे,
जो भी था सबको माफ करे,
बेशर्त ये साझेदारी है,
संघर्ष अभी भी जारी है,
जो तुम ना होते संगी तो,
कैसे जीते चालीस साल।
ऐसे बीते चालीस साल।