Thursday, 15 December 2016

चाँद पर

जो जो चश्म ए गजल को दिखा चाँद पर।
सुख़नवर ने उतना लिखा चाँद पर।

ख्वाब लफ्जो की सूरत यु बिछते गए,
फ़न ग़ज़ल का भी हमने सीखा चाँद पर।
सुख़नवर ने उतना लिखा चाँद पर।

पूरा दिन गर्म सूरज से लड़ने के बाद,
रात जाकर ये दिल फिर टिका चाँद पर।
सुख़नवर ने उतना लिखा चाँद पर।

गज़ले औ नज़्में औ बंद औ रुबाई,
रातभर जाने क्या क्या बिका चाँद पर।
सुख़नवर ने उतना लिखा चाँद पर।