Wednesday, 27 August 2014

क्या वैसे ही हम है?

जैसा हम सोचते है, क्या वैसे ही हम है?
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

इश्क़ बेशक है लेकिन जरा ये भी सोचो,
हमारी जरुरत से ज्यादा है, कम है?
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.


इश्क़ में भी मिलावट है कितनी जियादा,
उम्मीदे, तकाज़े, कुछ शर्त औ कसम है.
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

इश्क़ ऐसा हो, सजदा भी हो, रिँदगी भी,
वही मयखाना और दैर-ओ-हरम है।
ये तुम्हारा भरम है, हमारा भरम है.

Saturday, 16 August 2014

दोहे



लिबास बदला रिश्ते का, है वही पुरानी जां,
ज्यों ज्यों बूढी हो रही, बेटी लगे है माँ।

बड़ा सरल और साफ़ है रिश्तो का आधार,
जितनी मुझसे जरूरते, उतना मुझसे प्यार।

एक ही जीवनकाल में बदले दो किरदार,
जो घर का सरदार था,अब वहीं है पहरेदार।

अपने अपने तौर से दोनों ने जताया प्यार,
माँ ने सुसंस्कार दिए, पीता ने कारोबार।

Wednesday, 13 August 2014